नई दिल्ली. हर रोज दुनिया भर के वैज्ञानिक अंतरिक्ष के रहस्यों के बारे में नए-नए खुलासे करते हैं. अब वैज्ञानिकों ने चांद के एक छोटे भाई को खोजने का दावा किया है. चांद का यह भाई धरती की ही कक्षा में चहलकदमी कर रहा है. दरअसल, वैज्ञानिकों का मानना है कि अरबों साल पहले मंगल ग्रह के आकार की वस्तु धरती से टकराई थी और उसी टक्कर में चांद का निर्माण हुआ था. चांद हमारे अंतरिक्ष का एक सबसे खूबसूरत उपग्रह है. यह धरती के बेहद करीब है और पांच दशक पहले 1969 में ही यहां पर इंसान पहुंच गए थे. लेकिन अब वैज्ञानिकों का कहना है कि अंतरिक्ष में चांद अपने तरह का एक मात्र उपग्रह नहीं है. उन्होंने एक ऐसे ही ऐस्टेरॉयड की खोज की है जो चांद का टुकड़ा हो सकता है और वह धरती की कक्षा में भ्रमण कर रहा है.
वैज्ञानिकों का दावा है कि इस क्षुद्रग्रह का आकार बहुत छोटा है. इस कारण इसके बारे में अभी बहुत जानकारी नहीं मिल पाई है. आकार में छोटा होने की वजह से इसे देखा नहीं जा सकता. इसका नाम कमूआलेवा नाम दिया गया है. वैज्ञानिकों ने धरती के करीब ऐसे पांच ऑब्जेक्ट्स को देखा है.
नेचर कम्युनिकेशंस में इस बारे में एक रिपोर्ट छपी है. यूनिवर्सिटी ऑफ ऐरिजोना के नेतृ्त्व में अंतरिक्ष यात्रियों की एक टीम ने कहा है कि इस ऐस्टेरॉयड को धरती से केवल कुछ ही समय तक देखा जा सकता है. इसे अप्रैल महीने में कुछ हफ्तों तक ही देखा जा सकता है. वैज्ञानिकों ने इस ऐस्टेरॉयड की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए दक्षिणी एरिजोना में एक बड़े बाइनोकूलर टेलीस्कोप का इस्तेमाल किया.
वर्ष 2016 में पहली बार इस ऐस्टेरॉयड को देखा गया था. उस वक्त उसे हवैइन नाम दिया गया था. इस क्षु्द्रग्रह का व्यास 150 से 190 फीट के बीच है. यह धरती से करीब 90 लाख माइल की दूरी पर है.
ऐरिजोना यूनिवर्सिटी में विज्ञान के छात्र और इस शोध पत्र को लिखने वाले बेन शार्की का कहना है कि कमूआलेवा प्रकृति चांद से मिलती जुलती है. यह भी चांद की तरह प्रकाश को रेफलेक्ट करता है. उसकी बनावट भी चांद से मिलती जुलती है. इस कारण इसे चांद का हिस्सा माना जा रहा है. शार्की का कहना है कि उन्होंने धरती के करीब मौजूद सभी ऐस्टेरॉयड को ध्यान पूर्वक देखा लेकिन किसी से भी इसका मिलान नहीं हुआ
वैज्ञानिक अभी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि यह क्षुद्रग्रह चांद से टूटकर अलग हुआ है. दरअसल, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अभी तक किसी भी ऐसे ऐस्टेरॉयड के बारे में पता नहीं चला है जिसकी उत्पति चांद से हुई हो. तीन साल के गहन अध्ययन के बाद इस शोध पत्र को लिखा गया है. शार्की ने अपने सलाहकार एसोसिएट प्रोफेसर विष्णु रेड्डी के नेतृत्व में यह शोध पूरा किया. शार्की ने कहा कि हमें अपने आप पर संदेह हो रहा था. लेकिन इस साल अप्रैल में हमने काफी गहना से इसको देखा तो पता चला कि यह तो वास्तविक है.
ऐसे मजबूत संकेत मिले हैं कि कमूआलेवा की उत्पति चांद से हुई. यह धरती की तरह ही एक कक्ष में भ्रमण कर रहा है. हालांकि यह थोड़ा झुका हुआ है. इस शोध पत्र की सह लेखिका रेनू मलहोत्रा ने कहा है कि धरती के करीब के ऐस्टेरॉयड अपने आप अपना कक्ष बदल देते हैं. अनुमान है कि कमूआलेवा अभी जिस कक्ष में भ्रमण कर रहा है वह उसमें करीब 500 साल पहले आया है और यह इस कक्ष में करीब 300 सालों तक ही भ्रमण करेगा.