नई दिल्ली। तमाम जद्दोजहद और लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार इस बार सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु मामले की याचिका पर सुनवाई करते हुए इच्छामृत्यु को उचित ठहराया है और शर्तों के साथ इच्छामृत्यु का आदेश दे दिया है। इस इच्छा मृत्यु मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया है। इस बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा कर रहे थे।
गौरतलब है कि अपने फैसले में सु्प्रीम कोर्ट ने कहा कि हर व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि अगर डॉक्टर कहता है कि डॉक्टर किसी मरीज की बीमारी को लाईलाज बताता है तो वह मरीज को इच्छामृत्यु मांग सकता है।
इतना ही नही सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा अगर मरीज का बीमारी का ईलाज नहीं हो सकता और बहुत पीड़ा में है, तो परिवार या रिश्तदारों की सहमति के साथ-साथ डॉक्टर के डिक्लेयरेशन के बाद मरीज को इच्छामृत्यु दी जा सकती है।
बेहद गौर करने की बात है कि ‘पैसिव यूथेनेशिया’ इच्छामृत्यु वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 11 अक्तूबर को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
ज्ञात हो कि भारत में इच्छामृत्यु का मुद्धा अरूणा रामचंद्र शानबाग से जुड़ी घटना के बाद से उठा। अरूणा शानबाग का नवंबर 1973 में मुंबई के एक अस्पताल में अस्पताल के ही वॉर्ड बॉय ने उनका बेरहमी से बलात्कार किया। जिसके बाद लगभग 42 साल तक वो बिस्तर पर रही और स्वतः मौत 18 मई 2015 को मरी।
हालांकि उससे पहले कई एनजीओ और उनके परिचितों ने सुप्रीम कोर्ट में अरूणा की इच्छामृत्यु की अपील की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु को जीवन के अधिकार के खिलाफ बताया और अपने फैसले को सुरक्षित रख रही थी। लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर बड़ा ही अहम फैसला दिया है।