दिल संबंधी बीमारियों के पीछे हाई बीपी, स्मोकिंग, डायबिटीज और मोटापे को बड़ी वजह माना जाता है. फिजिकल वर्किंग में कमी भी हार्ट से जुड़ी बीमारियों का कारण मानी जाती है.लेकिन क्या आप जानते हैं कि मानसिक तनाव भी हार्ट अटैक या स्ट्रोक जैसी घातक बीमारियों की बड़ी वजह बन सकता है. हाल ही में एक स्टडी में ये बात सामने आई है. स्टडी में बताया गया है कि मानसिक तनाव धमनियों में समस्या पैदा कर देता है. जिस वजह से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.
अगर कोई व्यक्ति लंबे वक्त से तनावग्रस्त है तो उसे हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जामा) द्वारा की गई स्टडी के अनुसार कम हेल्दी हार्ट वाले लोगों में अटैक, स्ट्रोक या फिर कार्डियोवस्कुलर डिजीज के लिए शारीरिक से ज्यादा मानसिक तनाव जिम्मेदार होता है. स्टडी के दौरान हार्ट से जुड़ी बीमारियों के शिकार 900 से ज्यादा लोगों पर शारीरिक और मानसिक तनाव के प्रभाव का आंकलन किया. इस दौरान नजर आया कि मानसिक तनाव से मायोकार्डियल इस्किमिया का जोखिम बढ़ गया. बता दें कि इस स्थिति में दिल में ब्लड का सर्कुलेशन कम हो जाता है. इससे हार्ट की मसल्स को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है.
52 देशों के 24 हजार से ज्यादा लोगों पर हुई स्टडी में ये बात सामने आई थी कि जिन लोगों में हाई लेवल मेंटल स्ट्रेस अनुभव किया, उन्हें हार्ट स्ट्रोक, अटैक का जोखिम दोगुना से ज्यादा था. कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. माइकल ओसबोर्न के अनुसार मानसिक तनाव की वजह नौकरी छूटना, घर को नुकसान या किसी अपने को खो देना हो सकती है. लगातार फाइनेंशियल क्राइसिस का सामना करने, चिंता या गंभीर अवसाद की हार्ट डिजीज पैदा कर सकता है. ओसबोर्न के अनुसार तनाव बढ़ने पर दिमाग का फियर सेंटर रिएक्ट करता है और हार्मोन रिलीज करने लगता है. इससे शरीर में फैट, बीपी और इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ जाता है. जब बार-बार ऐसा होता है तो दिल की धमनियों में सूजन आने लगती है. इससे ब्लड क्लॉटिंग बढ़ जाती है. इसका नतीजा हार्ट अटैक या स्ट्रोक के रूप में सामने आता है.
इन बातों का रखें ध्यान
रिसर्चर्स के मुताबिक तनाव घटाने वाले प्रोग्राम्स से भी फायदा मिल सकता है. इसमें योग, मेडिटेशन और ताइ ची शामिल हैं. नियमित वर्कआउट करना भी तनाव दूर करता है. इन तरीकों से शरीर का पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र सक्रिय हो जाता है. डॉ. ओसबोर्न बताते हैं कि पर्याप्त नींद से भी दिल की बीमारी का जोखिम कम हो जाता है. ऐसे में सोने और जागने का पैटर्न बनाना आवश्यक है. सोते वक्त पास में स्मार्टफोन या कंप्यूटर को रखने से बचें. इससे निकलने वाली नीली रोशनी नुकसानदायक होती है.