- प्रदेश की योगी सरकार को आज एक साल पूरा हो गया
- काफी हद तक सरकार उतना कमाल नही दिखा सकी
- जिसकी अपेक्षा प्रदेश की जनता द्वारा की जा रही थी
- जो कि संभवतः सरकार बखूबी कर भी सकती थी
लखनऊ। ठीक एक साल पहले यानी की 19 मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्ता में काबिज हुई योगी सरकार को आज एक साल पूरा हो गया है। इस मौके पर सरकार की तरफ से एक साल का रिपोर्ट कार्ड पेश किया गया। वहीं ट्विटर हैंडल पर Ek Saal Nai Misaal हेशटैग भी चल रहा है। लेकिन अगर बखूबी गौर किया जाये तथा इस एक साल का मूल्यांकन किया जाये तो जनता के हिसाब से काफी हद तक योगी सरकार उतना कमाल नही दिखा सकी जिसकी अपेक्षा प्रदेश की जनता द्वारा की जा रही थी और जो कि सरकार कर भी सकती थी। मगर कुछ गुड़ ढीला रहा और कुछ बनिया की तर्ज पर स्थितियां रहीं जस की तस। और इसके पीछे कारण भी वो अफसर रहे जो सरकार बदलने के बावजूद भी हुए नही कहीं टस से मस।
हालांकि राजधानी लखनऊ के लोक भवन में इस कार्यक्रम का आयोजन किया है। इस दौरान एक साल-नई मिसाल नाम से वीडियो के अलावा ‘एक साल-नई मिसाल’ नाम से एक पुस्तिका का विमोचन किया। इसके अलावा यहां कई सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। वहीं इस मौके पर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार को एक साल पूरे हो चुका है। मूल्यांकन के लिए 1 साल काफी नहीं है। बावजूद सरकार ने 19 मार्च 2018 तक अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाया।
उन्होंने आगे कहा कि यूपी की राजनीति परिवारवाद, जातिवाद के चलते बदनाम थी। हमने इस कलंक को मिटाया। सरकार के खजाना खाली था। कर्मचारियों के सैलेरी नहीं मिल रही थी। ज्ञात हो कि 19 मार्च 2017 को 14 साल के सियासी वनवास बाद बीजेपी यूपी में सत्ता में वापस लौटी थी और मुख्यमंत्री का ताज योगी आदित्यनाथ के सर सजा था।
योगी ने कहा कि 36 हजार करोड़ के प्रावधान से 86 लाख लघु और सीमांत किसानों का कर्ज मांफ हुआ। गन्ना किसानों का 27 हजार करोड़ रुपए बकाया मूल्य का भुगतान किया। वहीं उन्होंने कहा कि उज्ज्वला योजना के तहत प्रदेश के 56 लाख गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया गया। साथ ही लखनऊ में हुए इन्वेस्टर्स समिट से भी प्रदेश को काफी निवेश प्राप्त हुआ। साथ ही पीएम द्वारा चलाए गए स्वच्छता अभियान को योगी सरकार ने बढ़ावा दिया। योगी सरकार के सख्त निर्देशों के बाद कई गांव में शौचालय बनाए गए। योगी के नेतृत्व में स्वच्छता अभियान काफी आगे बढ़ा।
इसी प्रकार योगी सरकार ने इस बार शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के उद्देश्य से यूपी में नकल विहीन परीक्षा कराने का ऐलान किया। साथ ही परीक्षा केंद्रों में सीसीटीवी कैमरा, फ्लाइंग स्क्वायड की लगातार ड्यूटी आदि ने नकलचियों के होश उड़ा दिए। वहीं सरकार द्वारा की सख्ती के कारण कई छात्र-छात्राओं ने परीक्षा ही छोड़ दी।
जबकि इससे इतर गौरतलब है कि अप्रत्याशित तौर पर प्रचण्ड बहुमत प्राप्त कर बनी प्रदेश की योगी सरकार ने वैसे तो शुरूआत में तेजी दिखाते हुए बखूबी जनता को प्रभावित करने का काम तो किया था। मगर यहां बरसों से जमे और जुगाड़ी अफसर भारी पड़े सरकार के तमाम प्रयासों पर, जिसके चलते परिणाम बेहतर की जगह कमतर रहे और हालात लगभग बदतर रहे।
जिसकी बानगी रही कि योगी सरकार द्वारा जहां एक तरफ कानून व्यवस्था जैसे अहम मुद्दे पर प्रदेश में सुधार के लिए एनकाउंटर समेत कई कदम उठाए हैं। जिससे कानून व्यवस्था में कुछ सुधार देखने को मिला और पुलिस विभाग की हनक पहले की तुलना में अब बेहतर हुई है। लेकिन फिर वो ही बात कि कुछ अफसरों की कार्य संस्कृति सुधरने का नाम नहीं ले रही है। कई जगहों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, इसके आधार पर सरकार ने अफसरों पर कार्रवाई भी की, पर कोई बड़ा सुधार नहीं हो पाया।
वहीं मुख्यमंत्री योगी तथा सरकार को गोरखपुर में हुई बीआरडी मेडिकल कॉलेज की घटना से ही चेत जाना चाहिए था कि उनके स्वंय के ही जनपद में कितना बड़ा षणयंत्र हुआ जिसकी उनको भनक तक नही लग सकी बावजूद इसके मामला हल्के में ले लिया गया। और उसकी बानगी रही कि हाल ही में हुए उपचुनावों में सीएम और डिप्टी सीएम की साख रही दोनों सीटें गोरखपुर और फूलपुर सीट भारतीय जनता पार्टी हार गई। फूलपुर हारना उतना चौंकाने वाला नहीं रहा जितना कि तकरीबन तीन दशकों से हाथ में रही गोरखपुर सीट पर हारना रहा। वहीं इसके बाद ताबड़तोड़ किए गए अधिकारियों के तबादलों ने सरकार की छवि पर भी उंगली उठा दी। कहा गया कि सरकार उप चुनाव में करारी हार के बाद बौखला गई है और अफसरों को ताश के पत्ते की तरह फेंट रही है। जबकि ये काम तो काफी पहले से ही शुरू कर दिया जाना था।
इसके साथ ही योगी सरकार द्वारा बेटियों की सुरक्षा और बेहतरी के लिए प्रदेश में मनचलों और छेड़खानी पर लगाम लगाने के एंटी रोमियो सेल का गठन किया था। गठन के शुरुआती 3 महीनों में एंटी रोमियो स्क्वॉड की चर्चा प्रदेश और देशभर में रही लेकिन धीरे-धीरे इसकी की रफ्तार सुस्त हो गई। और उसकी बानगी यह रही कि प्रदेश भर में आज तकरीबन हर रोज कहीं न कहीं शोहदेबाजों और विक्षिप्त श्रेणी के अपराधियों के चलते कोई बेटी या तो स्कूल छोड़ने को मजबूर है या फिर जान गंवा रही है। वहीं ऐसे अधिकांश मामलों में पुलिस का रवैया भी काफी हद तक बेहद खेदजनक रहता है।
इसके अलावा सरकार का जैसा कि ऐलान था कि जून 2017 तक प्रदेश की सड़के गडढा मुक्त हो जायेंगी लेकिन कारण चाहे जो भी रहे हों पर ऐसा अभी भी पूरी तरह से संभव नही हो ससका है बल्कि प्रदेश की तो छोड़ दी जाये राजधानी लखनऊ की तमाम गडढायुक्त सड़कें आज भी गडढा मुक्त होने की बांट जोह रही है।