चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन मां दूर्गा की पूजा के साथ रामनवमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन का धर्म के हिसाब से बहुत महत्व है। हिंदू संप्रदाय श्री राम के जन्मदिन यानि की रामनवमी के रुप में इस दिन को बड़ी धूम-धाम के साथ मनाता है। शास्त्रों के अनुसार श्री राम का जन्म दिन के 12 बजे हुआ था और इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना भी की थी। देश के अलग-अलग हिस्सों में श्री राम की आराधना के साथ इस दिन की खुशियां मनाई जाती हैं।
रामनवमी व्रत के नियम
रामनवमी व्रत के लिए सुबह उठकर व्रत रखने का संकल्प लिया जाता है। व्रत की सुबह से लेकर अगली सुबह तक यह व्रत चलता है। कुछ लोग या व्रत निराहार तो कुछ फलाहार के रूप में रखते हैं। इस व्रत की पूजा व्रत के शुरू होने और खत्म होने के समय भी की जाती है।
रामनवमी व्रत की पूजा और विधि
इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत इस दिन बिना मुहुर्त के की जा सकती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। रोली, चावल, स्वच्छ जल, फूल, घंटी, शंख आदि और भी बहुत सी सामग्री पूजा के लिए इस्तेमाल होती है।
भगवान राम और माता सीता व लक्ष्मण की मूर्ति को पूजा की सामग्री अर्पित करने के बाद मुट्ठी भर चावल चढ़ाए जाते हैं। भगवान राम की कथा, आरती, रामचालीसा के बाद पूजा में शामिल जल का घर में छिड़काव किया जाता है।
रामनवमी व्रत की कथा
लोग इस दिन व्रत रखते और कथा करते हैं। इस प्रकार है रामनवमी व्रत की कथा। एक बार की बात है वनवास के दौरान राम,माता सीता और लक्ष्मण बुढ़िया के पास पंहुच गए। वह बुढिया उस समय सूत कात रही थी। बुढ़िया ने श्री राम,माता सीता और लक्ष्मण की आवभगत की,उन्हें स्नाना,ध्यान करवा कर भोजन करने का आग्रह किया। तभी भगवान राम ने बुढ़िया से कहा कि मेरा हंस भी भूखा है, पहले उसके लिए मोता ला दो ताकि बाद में मैं भी भोजन कर सकूं। इस बात को सुन कर बुढ़ियां मुश्किल में पड़ गई, घर आए मेहमानों का वह निरादर नहीं करना चाहती थी इसलिए वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और राजा को उधार में मोती देने की बात कही। राजा को पता था कि मोती वापिस देने की बुढिया की हैसियत नहीं है लेकिन फिर भी उसने तरस खाकर बुढिया को मोती दे दिया। फिर हंस के मोती खाने के बाद भगवान श्री राम ने भी भोजन किया। जाते-जाते प्रभु बुढिया के आंगन में मोती की पेड़ लगा गए। जब पेड को मोती लगने लगे तो इन गिरते मोतियों को पड़ोसी उठाकर ले जाते। इसकी बुढिया को कोई सुध नहीं थी। एक दिन वह पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी। जैसे ही पेड से मोती गिरे तो उन्हें समेट कर वह राजा के पास ले गई। राजा ने उससे पूछा कि बुढिया के पास इतने सारे मोती कहा से आए तो बुढ़िया ने आंगन में पेड होने की बात कही। अब राजा ने वह पेड़ अपने आंगन में मंगवा कर लगवा लिया और फिर उस पेड़ पर मोतियों की बजाए कांटे लगने शुरू हो गए। एक दिन वही कांटा रानी के पैर में चुभा तो इस पीड़ा व पेड़ दोनों राजा से सहन न हो सके उसने तुरंत पेड़ दोबारा बुढ़िया के आंगन में ही लगवा दिया और फिर पेड़ पर प्रभु की लीला से फिर से मोती लगने लगे। इन मोतियों को बुढ़िया प्रभु के प्रसाद रुप में बांटने लगी।
चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी का दिन मां दूर्गा की पूजा के साथ रामनवमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन का धर्म के हिसाब से बहुत महत्व है। हिंदू संप्रदाय श्री राम के जन्मदिन यानि की रामनवमी के रुप में इस दिन को बड़ी धूम-धाम के साथ मनाता है। शास्त्रों के अनुसार श्री राम का जन्म दिन के 12 बजे हुआ था और इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना भी की थी। देश के अलग-अलग हिस्सों में श्री राम की आराधना के साथ इस दिन की खुशियां मनाई जाती हैं।
रामनवमी व्रत के नियम
रामनवमी व्रत के लिए सुबह उठकर व्रत रखने का संकल्प लिया जाता है। व्रत की सुबह से लेकर अगली सुबह तक यह व्रत चलता है। कुछ लोग या व्रत निराहार तो कुछ फलाहार के रूप में रखते हैं। इस व्रत की पूजा व्रत के शुरू होने और खत्म होने के समय भी की जाती है।
रामनवमी व्रत की पूजा और विधि
इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत इस दिन बिना मुहुर्त के की जा सकती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। रोली, चावल, स्वच्छ जल, फूल, घंटी, शंख आदि और भी बहुत सी सामग्री पूजा के लिए इस्तेमाल होती है।
भगवान राम और माता सीता व लक्ष्मण की मूर्ति को पूजा की सामग्री अर्पित करने के बाद मुट्ठी भर चावल चढ़ाए जाते हैं। भगवान राम की कथा, आरती, रामचालीसा के बाद पूजा में शामिल जल का घर में छिड़काव किया जाता है।
रामनवमी व्रत की कथा
लोग इस दिन व्रत रखते और कथा करते हैं। इस प्रकार है रामनवमी व्रत की कथा। एक बार की बात है वनवास के दौरान राम,माता सीता और लक्ष्मण बुढ़िया के पास पंहुच गए। वह बुढिया उस समय सूत कात रही थी। बुढ़िया ने श्री राम,माता सीता और लक्ष्मण की आवभगत की,उन्हें स्नाना,ध्यान करवा कर भोजन करने का आग्रह किया। तभी भगवान राम ने बुढ़िया से कहा कि मेरा हंस भी भूखा है, पहले उसके लिए मोता ला दो ताकि बाद में मैं भी भोजन कर सकूं। इस बात को सुन कर बुढ़ियां मुश्किल में पड़ गई, घर आए मेहमानों का वह निरादर नहीं करना चाहती थी इसलिए वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और राजा को उधार में मोती देने की बात कही। राजा को पता था कि मोती वापिस देने की बुढिया की हैसियत नहीं है लेकिन फिर भी उसने तरस खाकर बुढिया को मोती दे दिया। फिर हंस के मोती खाने के बाद भगवान श्री राम ने भी भोजन किया। जाते-जाते प्रभु बुढिया के आंगन में मोती की पेड़ लगा गए। जब पेड को मोती लगने लगे तो इन गिरते मोतियों को पड़ोसी उठाकर ले जाते। इसकी बुढिया को कोई सुध नहीं थी। एक दिन वह पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी। जैसे ही पेड से मोती गिरे तो उन्हें समेट कर वह राजा के पास ले गई। राजा ने उससे पूछा कि बुढिया के पास इतने सारे मोती कहा से आए तो बुढ़िया ने आंगन में पेड होने की बात कही। अब राजा ने वह पेड़ अपने आंगन में मंगवा कर लगवा लिया और फिर उस पेड़ पर मोतियों की बजाए कांटे लगने शुरू हो गए। एक दिन वही कांटा रानी के पैर में चुभा तो इस पीड़ा व पेड़ दोनों राजा से सहन न हो सके उसने तुरंत पेड़ दोबारा बुढ़िया के आंगन में ही लगवा दिया और फिर पेड़ पर प्रभु की लीला से फिर से मोती लगने लगे। इन मोतियों को बुढ़िया प्रभु के प्रसाद रुप में बांटने लगी।