लखनऊ : मोदी और योगी सरकार की कार्यप्रणाली पर जब तब तमाम सवालात खड़े करने वाले उन तमाम तथाकथित उलेमाओं और नेताओं को शिया वक्फ बोर्ड द्वारा लिखा गया मोदी को खत और उसका मजमून काफी हद तक न सिर्फ नागवार गुजरेगा बल्कि तय है कि इसे वो सभी बोर्ड की भाजपा और संघ से साठगांठ और अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश करार देंगे। लेकिन बात तो तय है कि बिना आग के कहीं धुंआ नही होता। बोर्ड ने अगर ऐसा खत लिखा है तो जाहिर है कि उसके साथ ही उसने उसकी वजह और सबूत भी रखें होंगे। लेकिन बावजूद इसके इस मसले पर हाय तौबा मचना तय माना जा रहा है।
गौरतलब है कि शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि देश में मदरसों को बंद कर दिया जाये. निकाय ने आरोप लगाया है कि ऐसे इस्लामी स्कूलों में दी जा रही शिक्षा छात्रों को आतंकवाद से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है. प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में शिया बोर्ड ने मांग की है कि मदरसों के स्थान पर ऐसे स्कूल हों, जो सीबीएसई या आईसीएसई से संबद्ध हों और ऐसे स्कूल छात्रों के लिए इस्लामिक शिक्षा के वैकल्पिक विषय की पेशकश करेंगे.
बोर्ड ने सुझाव दिया है कि सभी मदरसा बोर्डों को भंग कर दिया जाना चाहिए. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने दावा किया कि देश के अधिकतर मदरसे मान्यता प्राप्त नहीं हैं और ऐसे संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करने वाले मुस्लिम छात्र बेरोजगारी की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि ऐसे मदरसे लगभग हर शहर, कस्बे, गांव में खुल रहे हैं और ऐसे संस्थान गुमराह करनेवाली धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि मदरसों के संचालन के लिए पैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी आते हैं तथा कुछ आतंकवादी संगठन भी उनकी मदद कर रहे हैं.
इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता खलील-उर-रहमान सज्जाद नोमानी ने कहा कि आजादी की लड़ाई में मदरसों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और रिजवी उन पर सवाल उठाकर उनकी तौहीन कर रहे हैं. हालांकि, रिजवी ने एक ट्वीट में कहा कि ऐसे स्कूलों को सीबीएसई या आईसीएसई से संबद्ध किया जाना चाहिए और उनमें गैर-मुस्लिम छात्रों के लिए भी अनुमति होनी चाहिए.