नयी दिल्ली! कर्नाटक में चुनाव से पहले बीजेपी व नरेंद्र मोदी को बहुत बड़ा झटका लगा है. कांग्रेसी सीएम द्वारा लिंगायत धर्म को मान्यता देने का दांव कामयाब होता दिख रहा है. देश में हलचल मचाने वाले इस मुद्दे पर अंतिम मुहर केंद्र सरकार का लगना है. इस पर बीजेपी अपना रूख साफ करती उससे पहले ही लिंगायत समुदाय के 30 प्रभावशाली गुरुओं ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का समर्थन कर दिया है. इसकी मुख्य वजह प्रदेश सरकार द्वारा लिंगायत को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का फैसला ही है.
लिंगायत समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है, बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से आते हैं. कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों की संख्या करीब 18 प्रतिशत है. कांग्रेस सरकार के इस दांव से बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए भी यह बड़ा झटका है क्योंकि हाल ही में उन्होंने कर्नाटक के कई मठों में जाकर लिंगायत समुदाय के गुरुओं से मुलाकात की थी. इस समुदाय का बीजेपी को 90 के दशक से ही समर्थन मिलता आ आ रहा है. बड़ी बात यह है कि राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिक सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव है. चुनाव से ठीक पहले सार्वजनिक तौर पर किसी एक व्यक्ति या राजनीतिक दल को समर्थन देने की घोषणा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कई दशकों में ऐसा नहीं हुआ है. आपको बता दें कि 12 मई को कर्नाटक में चुनाव होनेवाले हैं.
धर्मगुरु माते महादेवी ने मीटिंग के बाद कहा, ‘सिद्दारमैया ने हमारी मांग का समर्थन किया है. हम उनका समर्थन करेंगे. महादेवी का उत्तरी कर्नाटक में काफी प्रभाव है.’ एक अन्य धर्मगुरु मुरुगराजेंद्र स्वामी ने भी कहा, ‘हम उनका समर्थन करेंगे जिन्होंने हमें सपॉर्ट किया.’ मुरुगराजेंद्र ने बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह को ज्ञापन देकर अलग धर्म की मांग का समर्थन करने को कहा था.
यह पूछे जाने पर कि क्या इस फैसले का मतलब कांग्रेस को समर्थन देना है क्योंकि शाह पहले ही कह चुके हैं कि बीजेपी इसके खिलाफ है, इस पर स्वामी ने कहा कि आप इसे इस तरह से समझ सकते हैं. वहीं, कुदालसंगम मठ (लिंगायत मत के संस्थापक बसवेश्वर) के जय मृत्युंजय स्वामी ने कहा, ‘अमित शाह ऐसा बयान देनेवाले कौन होते हैं?’ (लिंगायत से वीरशैव को अलग करने के बारे में)