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मायावती की रणनीति की बलिहारी, जो कांग्रेस और जेडीएस ने बाजी मारी

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लखनऊ। भले ही कर्नाटक चुनाव में भाजपा की शिकस्त में कांग्रेस के प्रयासों का अहम योगदान रहा हो लेकिन भाजपा को बैकफुट पर लाने के लिए व्यूह रचना तो असल में गठबंधन की सियासत की अनुभवी बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा ही की गई थी इसलिये उनके इस योगदान की अहमियत सर्वोपरि है। उनके ही प्रयास का नतीजा है कि जेडीएस और कांग्रेस के बीच न सिर्फ सहमति बन सकी बल्कि सरकार बनाने की नौबत तक आ सकी। हालांकि कर्नाटक में भी उनकी पार्टी ने अपनी धमक दर्ज करा दी है। जिसके चलते उनके हौसले और भी बुलंद हो चले हैं।

गौरतलब है कि कर्नाटक में हालांकि वैसे तो चुनाव के पूर्व से ही जेडीएस को किंग मेकर के रूप में देखा जा रहा था लेकिन चुनाव के बाद आते जो परिणामों के संकेत थे उससे भाजपा काफी उत्साहित नजर आ रही थी लेकिन गठबंधन की सियासत की बेहद अनुभवी बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने कुछ ऐसा मंत्र जेडीएस और कांग्रेस के नेताओं के कानों में फूंका कि भाजपा का उत्साह न सिर्फ काफूर हो गया बल्कि उसका सरकार बनाने का ख़्वाब भी उससे दूर हो गया। वहीं किंग मेकर कही जा रही जेडीएस खुद किंग की भूमिका में आ गई। अचानक ही भाजपा की सारी गणित भी गड़बड़ा गई।

क्योंकि हाल के कर्नाटक चुनावों के दौराना मायावती जहां जेडीएस नेताओं के बराबर संपर्क में रहीं वहीं उन्होंने उनके अनुभव को भी सराहा था। इसी के चलते जब कर्नाटक चुनावों के नतीजों में हालात ऐसे नजर आये तो मायावती ने तुरंत जेडीएस मुखिया एच डी देवगौड़ा से संपर्क कर उनसे मौजूदा हालातों के मुताबिक रणनीति पर विचार विमर्श कर उन्हें साथ आने की सलाह दी।

साथ ही पार्टी के राज्यसभा सांसद अशोक सिद्धार्थ को चुनाव के परिणाम आने के बाद कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद से मिलने को कहा था।  जिसके चलते ही गुलाम नबी आजाद ने भी सोनिया गांधी को जेडीएस से हाथ मिलाने को कहा। इसके बाद मायावती ने जेडीएस के देवगौड़ा से बात की और उन्हें कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए मनाया। इसके साथ ही मायावती ने सोनिया को भी फोन करके बात कर जेडीएस के साथ के लिए मनाया।

कुल मिलाकर बसपा सुप्रीमों के पैंतरे भाजपा के लिए बनते जा रहे हैं खतरे इसकी बानगी हाल ही में उततर प्रदेश के उपचुनावों में उनके द्वारा चला गया पैंतरा कितना सटीक बैठा। वहीं कर्नाटक में भी सिर्फ चुनाव के आते हुए परिणामेां से ही आगे की रूपरेखा को समझ जाना तथा वहां के दो दलों को आपस में साथ लाना उनके जैसे राजनीति के मंझे खिलाड़ी के बस की ही बात है। इससे साफ जाहिर होता है कि 2019 का चुनाव उत्तर प्रदेश में तो भाजपा के लिए बहुत ही भारी है।

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