लखनऊ। कल तक सभी के बीच हंसने-बोलने वाले और अपनी जांबांजी से विभाग का सिर हमेशा ही ऊचा रखने वाले हर दिल अजीज सुपर कॉप राजेश साहनी अपने तमाम चाहने वालों को एक तरह से करके दीनहीन हो गये पंचतत्व में विलीन। राजधानी के बैकुण्ठधाम में आज उनकी इकलौती बेटी श्रेया ने उनको मुखाग्नि दी। ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है जब एक बेटी अपने पिता को मुखाग्नि देती है।
गौरतलब है कि यूपी एटीएस के एएसपी राजेश साहनी का आज अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान वहां मौजूद परिजनों के साथ-साथ पुलिस अधिकारियों की आंख नम थी। राजेश साहनी यूपी पुलिस के तेज तर्रार अधिकारियों में से एक थे। राजेश साहनी 1992 बैच के पीपीएस अधिकारी थे और जल्दी ही प्रमोट होकर आईपीएस बनने वाले थे। वहीं इससे पूर्व उत्तर प्रदेश पुलिस के जाबाज अफसर राजेश साहनी को राजधानी लखनऊ स्थित पुलिस लाइन में अंतिम सलामी दी गई। यूपी पुलिस के मुखिया ओपी सिंह ने राजेश साहनी के पार्थिव शरीर को कंधा दिया। जिसके बाद राजेश साहनी के शव को बैकुंठ धाम लाया गया।
ज्ञात हो कि यूपी एटीएस (आतंक निरोधी दस्ते) के एएसपी राजेश साहनी ने मंगलवार को लखनऊ के गोमतीनगर स्थित ATS मुख्यालय में अपनी सर्विस रिवॉल्वर से गोली मारकर खुदकुशी (suicide) कर ली थी। राजेश साहनी की आत्महत्या की खबर ने सबको सन्न कर दिया था। हालांकि ऐसा कदम अचानक क्यों उठा वो भी मुख्यालय में ये एक वो रहस्य है जो शायद हमेशा रहस्य ही रहेगा।
वहीं उनकी एक अफसर के तौर पर उपब्धियों पर अगर नजर डाली जाये तो उसकी फेहरिस्त बहुत ही लम्बी और काबिले तारीफ है। जैसा कि उन्होंने मई 2018:* इस्लामाबाद के भारतीय उच्चआयोग के अधिकारी के घर दो साल रहकर आईएसआई के लिए जासूसी करने वाले रमेश सिंह को पिथारौगढ़ से गिरफ्तार किया। सितम्बर 2017:* कई बंग्लादेशी घुसपैठियों की धरपकड़ करके अहम खुलासे किए। जिनका सम्बंध बंग्लादेश के आतंकवादी संगठन अंसारउल्ला बंग्ला टीम से था।
इसके साथ ही अगस्त 2017:* बब्बर खालसा से जुड़े उग्रवादी जसवंत सिंह काला को उन्नाव के एक फार्म हाउस से गिरफ्तार किया। मई 2017:* फैजाबाद से आईएसआई एजेंट आफताब को पकड़ा। आफताब की गिरफ्तारी से आईएसआई के कई स्लीपिंग माड्यूल का खुलासा हुआ। तथा वर्ष 2013:* एनआईए (नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी) में तैनाती के दौरान असलहा तस्करों के गैंग की कमर तोड़ने में अहम भूमिका निभाई। कार्रवाई से नक्सलियों को होने वाली असलहे की आपूर्ति बाधित हो गई।
अगर हम एक अफसर से परे अगर राजेश साहनी का उनके पत्रकारिता के दौर की बात करें तो उसमें भी वो न सिर्फ सबके चहेते थे बल्कि एक अच्छे कुशल पत्रकार भी थे। जिसके बाबत जहां उनके साथ काम कर चुके पत्रकारों की मानें तो उनके अनुसार राजेश साहनी उन पुरानी पीढ़ी के पत्रकारों को साथ लेकर चलते थे और बाजारवाद की पत्रकारिता से दूर रहते थे और उसका सामना भी करते थे, जैसा कि आज के पत्रकारों में शायद ही देखने को मिलता है। हम लोगों से उनका रिश्ता बहुत अच्छा था। इसके बाद इनका चुनाव राज्य पुलिस सेवा में हो गया था। यहां भी उनकी छवि ईमानदार और एक धाकड़ पुलिस ऑफिसर की बनीं।
सच मानिये तो राजेश साहनी जैसे व्यक्तित्व के लोग हर दिल अजीज होते हैं लेकिन उनके द्वारा ऐसा कदम उठाया जाना अपने आप में तमाम सवाल खड़े करता है कि आखिर ऐसी वो कौन से हालात थे जिनके चलते आननफानन में अचानक उन्होंने ऐसा कदम उठा लिया। खैर ये सवाल तो उनके साथ ही विलीन हो जायेगा। लेकिन उनके तमाम साथियों को उनका साथ बहुत ही याद आयेगा।