देहरादून! केदारनाथ धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र हैं. साल 2013 की आपदा के बाद उजड़ चुकी घाटी को दोबारा बसाने के लिए वहां पुनर्निमाण कार्य जोरों पर है, लेकिन ये विकास कार्य केदारनाथ में भविष्य का बड़ा खतरा बनता जा रहा हैं. जो कभी भी 2013 जैसी त्रासदी को जन्म दे सकता हैं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि केदारनाथ धाम में हो रहे पुनर्निर्माण कार्य वहां के बेहद संवेदनशील पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है. 2013 की त्रासदी एक सबक थी, लेकिन इससे सीखा नहीं गया, बल्कि ठीक इसके उलट एक और बड़ी त्रासदी की बुनियाद फिर डाली जा रही है. केदारनाथ को पुराने स्वरुप में लाने के लिए घाटी में हाई टेक तरीके से जो निर्माण कार्य किया जा रहा हैं, वो कभी भी विकास से विनाश में बदल सकता है.
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव ने स्पष्ट किया है कि वहां पर दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की तर्ज पर स्मार्ट विकास नहीं होना चाहिए. क्योंकि यह प्रकृति के खिलाफ़ जा रहा है. उत्तराखंड और केदार घाटी की भौगोलिक स्थितियां बिल्कुल अलग हैं. केदारघाटी पूरी ग्लेशियर के मोरेन और ढीली मिट्टी पर है. इसलिए वहां किसी भी तरह का मानवीय निर्माण नहीं होना चाहिए.
वैज्ञानिकों की माने तो आपदा के लिहाज से सवेंदनशील क्षेत्रों में जिस तेजी के साथ विकास कार्य किया जा रहा है, वो बड़े विनाश को जन्म देगा. उदाहरण के तौर पर गोरीकुंड और रामबाड़ा को ले सकते हैं, ये दोनों जंगह आपदा और भौगोलिक रूप से काफी सवेंदनशील है, लेकिन उसके बावजूद भी वहां जोरों पर निर्माण कार्य किजा जा रहा हैं.
श्रीवास्तव ने बताया कि आपदा पहले भी आती थी, लेकिन उस समय लोगों की जान कम जाती थी. पर्यावरण और प्राकृतिक रुप से विकास के नाम पर आज जो छेड़छाड़ का जा रही है, उसी का असर है कि बीते कुछ दशकों की तुलना में अब आपदा का खतरा ज्यादा बढ़ गया हैं. प्रदीप श्रीवास्तव ने उदाहरण देते हुए कहा कि सन 1896 बेलाकुची में बादल फटा था, तब महज 2 लोगों की जान गई थी. सन 1970 में उसी जगह बादल फटा था तब हरिद्वार और श्रीनगर का क्षेत्र भी उससे प्रभावित हुआ था. उस आपदा में 200 लोगों की मौत हुई थी. वहीं 2013 में उसी जगह पर बादल फटा तो 10 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई.
100 छात्रों के साथ किया गया था शोध- ये त्रासदी दर्शाती हैं कि आज आपदा कितनी बड़ी हो रही है और हम उससे अनजान बने हुए हैं. वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार के साथ मिलकर डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के माध्यम से 100 छात्रों की टीम बनाकर इस पर शोध भी किया था, ताकि छात्र यह सब जान पायें और खुद को आगे सुरक्षित रख पाएं.