डेस्क। तीन तलाक हलाला और बहु विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ जारी मुहिम से अब तमाम आला हजरात घबरा गए हैं और इस हद तक आ गये हैं कि मुहिम चलाने वाले और उसके मददगारों पर ही सितम ढाने लगे हैं। तरह-तरह की दलीलें देकर उन्हें डराने लगे हैं। एक तरह से बेवजह इस मामले को गरमाने लगे हैं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के बरेली में हलाला, 3 तलाक और बहुविवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाली आला हजरत खानदान की बहू निदा खान के खिलाफ फतवा जारी किया गया है। जिसके तहत एक तरह से तुगलकी फरमान जारी किया गया है। जो कि किसी भी सूरत में न तो लोकतांत्रिक देश का हिस्सा हो सकता है न ही सभ्य समाज का किस्सा।
जैसा कि इस बाबत शहर इमाम मुफ्ती खुर्शीद आलम ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि दरगाह आला हजरत के दारूल इफ्ता ने निदा खान के खिलाफ जारी फतवे में कहा है कि निदा अल्लाह, खुदा के बनाए कानून की मुखालफत कर रही है, इसी कारण निदा का हुक्का-पानी बन्द कर दिया गया है।
इस तुगलकी फरमान की हद काबिले गौर है कि इसके तहत मौत होने पर जनाजे की नमाज पढ़ने, कब्रिस्तान में दफनाने पर भी रोक लगाई इसके अलावा जारी इस फतवे में कहा गया है कि निदा की मदद करने वाले, उससे मिलने-जुलने वाले मुसलमानों को भी इस्लाम से खारिज किया जाएगा। इतना ही नही हद की बात ये है कि इसके मुताबिक अगर निदा अगर बीमार हो जाती है तो उसको दवा भी नहीं दी जाएगी। निदा की मौत पर जनाजे की नमाज पढ़ने, कब्रिस्तान में दफनाने पर भी रोक लगा दी गई है।
हालांकि इस सबसे बेफिक्र निदा खान ने पलटवार करते हुए कहा कि फतवा जारी करने वाले पाकिस्तान चले जाएं। हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है यहां 2 कानून नहीं चलेंगे। इस तरह का फतवा जारी करने वाले लोग सिर्फ राजनीति चमका रहे हैं। निदा ने कानूनी मदद लेने की बात की है।
वहीं इस पर तमाम जानकारों से बात करने पर उनका मानना है कि ये बेहद ही अफसोस की बात है जो एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह के फतवे जारी किये जा रहे हैं। जिनकी एक सभ्य समाज में कतई जगह नही है। ऐसे फतवे जारी करने वाले लोग न सिर्फ समाज की नजर में बल्कि खुद अल्लाह की नजर में भी गुनाहगार हैं। किसी मुस्लिम को इस्लाम से खारिज करने की हैसियत किसी की नहीं है। सिर्फ अल्लाह ही गुनहगार और बेगुनाह का फैसला कर सकता है।
बरेली की निदा खान के खिलाफ फतवा जारी कर उन्हें इस्लाम से खारिज किए जाने पर कड़ी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। मामले में निदा के पक्ष में तमाम जानकारों ने कहा है कि इस्लाम से निकालने का किसी को कोई हक नहीं है। इस्लाम मज़हब में मर्द-औरत को बराबर के अधिकार हैं। मज़हब की किसी को कोई भी कंफ्यूजन हो तो उलेमाओं से बात करें। साथ ही जानकारों के अनुसार सार्वजनिक तौर पर किसी को भी इस्लाम की आलोचना करने का अधिकार नहीं है।