नई दिल्ली। तमाम पीढ़ियों के खास-म-खास और तमाम-आम-ओ खास में एक अलग मुकाम बनाने वाले फिल्मी दुनिया से लेकर कवि सम्मेलनों के मंच पर एक लम्बे दौर तक बखूबी छाने वाले महान कवि गोपाल दास नीरज जी आज सभी चाहने वालों को छोड़ इस दुनिया से विदा हो गए। तमाम चाहने वालों के न चाहने के बावजूद उनसे जुदा हो गए। उनके खास और अजीजों की मानें तो उनके मुताबिक नीरज जी अक्सर कहा करते थें कि-
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आए हैं मयखाने में॥
गौरतलब है कि वैसे तो गोपालदास नीरज रुमानियत और श्रंगार के कवि माने जाते थे और कई पीढ़ी के लोगों के पसंदीदा कवि और गीतकार रहे। लेकिन इसके साथ ही उनकी कविताओं में जीवन दर्शन भी काफी गहराई से उभर कर आता है। कई दशक तक कवि सम्मेलनों जितना उनका नाम छाया उतना ही उनको बखूबी फिल्म उद्योग ने भी सम्मान से अपनाया।
हालांकि उन्होंने हिंदी फिल्मों के गीतों में कई अनूठे प्रयोग करते हुए अनेक कालजयी गीतों की रचना की। इसकी ही बानगी थी कि एक साक्षात्कार में नीरज ने कहा था ‘अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएं लोगों की जुबां और दिल में हों तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी।’
उल्लेखनीय है कि गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1924 को इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ। मात्र छह साल की उम्र में पिता ब्रजकिशोर सक्सेना का साया उनके उपर से उठ गया। नीरज ने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
बताया जाता है किपरिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी इसलिए शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर भी नौकरी की। लंबी बेरोजगारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी करने लगे।
वहीं जब आप दिल्ली से नौकरी छूट जाने पर नीरज कानपुर पहुंचे और वहां डीएवी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कंपनी में पांच साल तक टाइपिस्ट का काम किया। कानपुर के कुरसंवा मुहल्ले में उनका लंबा वक्त गुजरा। नौकरी करने के साथ ही प्राइवेट परीक्षाएं देकर उन्होंने 1949 में इंटरमीडिएट, 1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया।
इसके साथ ही नीरज ने मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। बाद में वहां की नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इसके बाद से ही अलीगढ़ उनका स्थायी ठिकाना बना और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।
इसके अलावा अपनी रुमानी कविताओं के कारण नीरज को देश भर के कवि सम्मेलनों से बुलावा आने लगा। वे हिंदी कविता में मंच के लोकप्रिय कवियों में शुमार हो गए। जबकि अगर गंभीरता से देखा जाए तो नीरज खुद को कवि बनने में सबसे बड़ी प्रेरणा हरिवंश राय बच्चन की निशा निमंत्रण को मानते हैं।
नीरज को मुंबई के फिल्म जगत से गीतकार के रूप में फिल्म नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण मिला। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत – कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे… और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा…बेहद लोकप्रिय हुए। इसके बाद वे मुंबई में रहकर फिल्मों के लिए गीत लिखने लगे। उन्होंने मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी कई चर्चित फिल्मों में कई लोकप्रिय गीत लिखे।
तीन फिल्म फेयर पुरस्कार: नीरज को सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए सत्तर के दशक में लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
1970 : काल का पहिया घूमे रे भइया ! ( फिल्म: चन्दा और बिजली), 1971 : बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं ( फिल्म: पहचान), 1972 : ए भाई ! जरा देख के चलो ( फिल्म : मेरा नाम जोकर)
नीरज के कुछ और लोकप्रिय गीत
– कहता है जोकर सारा जमाना, आधी हकीकत आधा फसाना…
– दिल आज शायर है, गम आज नगमा है, शब ये गजल है सनम…
– आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन मेरा मन।
– लिखे जो खत तुझे, हजारों रंग के नजारे बन गए।
– फूलों के रंग से दिल की कलम से, तुझको लिखी रोज पाती।
– मेघा छाए आधी रात.. बैरन बन गई निंदिया..
लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब नीरज मुंबई की चकाचौंध भरी जिन्दगी से काफी उकता गए और अलीगढ़ वापस लौट आए। यह भी कहा जाता है कि बॉलीवुड में उनके गीतों की कद्र करने वाले संगीतकारों की फेहरिश्त खत्म हो गई थी, इसलिए वे अपने शहर लौट आए। पर हकीकत कड़वी मगर ये ही थी कि दौर कुछ ऐसा आ गया था कि गीत और कविता के नाम पर ऐसा कुछ चलन में आने लगा था जिसे देख उन जैसे कालजयी कवि का मन बेहद उकताने लगा था।
नीरज की प्रमुख कृतियों में- दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएं, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनि, बादलों से सलाम लेता हूं, कुछ दोहे नीरज के, कारवां गुजर गया आदि प्रमुख हैं वहीं उनको मिले पुरस्कार – सम्मान में : 1970, 1971, 1972 – फिल्म फेयर पुरस्कार, 1991 में पद्मश्री, 1994 में यशभारती , 2007 में पद्म भूषण आदि शामिल हैं।