डेस्क। बसपा सुप्रीमो मायावती इस वक्त देश की सियासत का केन्द्र बिन्दु बनी हुई हैं दरअसल जिस तरह से मायावती ने फिलहाल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से किनारा कर झटका दिया है। एक तरह से जहां भाजपा के खिलाफ महागठबंधन की कवायद को तो झटका लगा ही साथ देश के अहम सूबे उत्तर प्रदेश में भी उनके इस रवैये से सुगबुगाहटें काफी तेज हो चली हैं कि काफी हद तक वो ऐन मौके पर समाजवादी पार्टी से भी किनारा कर सकती हैं।
गौरतलब है कि हाल फिलहाल मायावती के रवैये को देखते हुए जो समीकरण उभर रहे हैं, उससे यूपी में सपा-बसपा के महागठबंधन से कांग्रेस दूर हो सकती है। बड़ी समस्या समाजवादी पार्टी के साथ है। उसे बसपा की सम्मानजनक सीटें और पिछड़ों दलितों व अल्पसंख्यकों का ख्याल रखने जैसी शर्त को समझने और उसका पालन करने की चुनौती है। सपा में इस बात की भी आशंका है कि कहीं ऐन वक्त पर वह अकेली न पड़ जाए।
बसपा सुप्रीमों इस बात को बखूबी समझती हैं कि जो कांग्रेस और सपा का पारंपरिक वोटर है वो बसपा में ट्रांस्फर न हो लेकिन बसपा का वोट काफी हद तक इन दोनों दलों में ट्रांस्फर हो सकता है। वहीं मायावती बखूबी उत्तर प्रदेश में हुए हाल के उपचुनावों में अपनी रणनीति का असर बखूबी देख चुकी हैं। वहीं राज्यसभा चुनाव में सपा के गठबंधन धर्म का मर्म भी बखूबी समझ चुकी हैं कि उनका एक मात्र प्रत्याशी भी सपा जितवा नही सकी। जबकि उनहोंने कहा भी था कि अगर अखिलेश की जगह मैं होती तो पहले मैं सहयोगी का उम्मीदवार जितवाती है।
इसके साथ ही हाल ही में शिवपाल यादव द्वारा अलग मोर्चा बना लेने और खुल कर सपा के खिलाफ आने से सपा के सियासी समीकरणों पर कुछ न कुछ असर पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। मायावती इस बदले हुए समीकरण को समझती हैं कि अगर सपा व बसपा गठबंधन होता है और शिवपाल की नई पार्टी अलग से चुनाव लड़ती है तो यादव वोट बैंक में सेंध लग सकती है। इससे गठबंधन की कामयाबी पर असर पड़ सकता है। खुद सपा के सांसद तेज प्रताप यादव मान रहे हैं कि शिवपाल यादव का मोर्चा सपा की संभावनाओं पर असर डालेगा।
वहीं जिस तरह से प्रदेश में शिवपाल की सक्रियता खासी बढ़ रही है और वह कह चुके हैं कि बसपा जैसी समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन किया जा सकता है। इसे देखते अगर कहीं अगर बसपा और शिवपाल के मोर्चे के बीच तालमेल बैठ गया तो सपा के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। क्योंकि मौजूदा वक्त में बसपा सुप्रीमों के पास सपा के विकल्प के तौर पर शिवपाल का मोर्चा है ऐसे में सपा को कम सीटों के साथ बसपा की शर्त को पूरा करना होगा। वर्ना बसपा के पास विकल्प और भी हैं जिसके तहत संभव है कि कांग्रेस की तरह सपा से भी किनारा कर लिया जाए।