रवि प्रकाश श्रीवास्तव
लखनऊ। वक्त ने आज हम सबको इस कदर मजबूर कर दिया है कि इबातगाहों से न चाह कर भी यूं दूर कर दिया है। आज नौबत ये है कि हम किसी भी इबातगाह तक जाने की हालत में नही रहे ये हम सभी के लिए एक कड़वा और अहम सबक है कि आखिर ऐसी नौबत आई तो क्यों आई गौर से देखें तो इसकी जिम्मेदार कहीं न कहीं आदमी की वो सोच ही है जो अपने वर्चस्व को बनाने और बढ़ाने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार हो चली है। जिसका कोई इलाज ही नही ऐसी सोच की बीमार हो चली है संभवतः इसकी ही बानगी है ये कोरोना की महामारी जो पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुकी है। वहीं हमारा अपना देश और प्रदेश भी इससे अछूता नही रहा है। सभी कोरोना के खौफ के साये में जीने को मजबूर हैं।
गौरतलब है कि संभवतः तमाम हमारे आपकी उम्र वाले लोगों के लिए ये पहला मौका ऐसा रहा होगा कि जब न सिर्फ नवरात्रि और रामनवमी पर मंदिर सूने रहने को मजबूर रहे और तो और बल्कि रामनवमी पर राम की नगरी अयोध्या तक सूनी रहने को मजबूर रही। वहीं अब माहे रमजान की आमद हो चुकी है और नौबत ये है कि लॉकडाउन का साया अब भी है इतना गहराया कि जिसके चलते न सिर्फ मस्जिदें सूनी होंगी बल्कि देर रात तक गुलजार रहने वाले नवाबों की नगरी के तमाम वो इलाके भी सूने रहेंगे जिनकी मिसाल देश ही नही वरन दुनिया में दी जाती रही है। कुल मिलाकर सूनी है शामें और सूनी है सहर।
वैसे तो देश के तमाम राज्यों में ही माहे रमजान के दौरान अफ्तारी, तरावीह समेत सेहरी का सिलसिला जिस तरह से चलता था वो अपने आप में न सिर्फ बेमिसाल था बल्कि सही मायने में ये वो महीना है जिसमें सही मायने में कोई भी अपने तमाम गुनाहों की तौबा कर इबादत का दामन थाम काफी हद तक न सिर्फ माफी का हकदार हो जाता है बल्कि सवाब भी हासिल करता है। इस पूरे महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग पूरी तरह से बस इबादत में ही डूबे रहते हैं और गलती से भी किसी गुनाह के होने से बचने की भरपूर कोशिश करते हैं। इस दौरान जहां दिन भर भले ही तमाम मुस्लिम इलाकों में सन्नाटा पसरा रहे लेकिन शाम होते ही नजारा इकदम बदल जाता है।
शाम होते ही अफ्तारी की तैयारी से लेकर मस्जिदों में तराविहों का सिलसिला बखूबी शुरू हो जाता है जो कि देर रात तलक जारी रहता था। वहीं देर रात तक लोगों का मजमा तमाम होटलों और पान की दुकानों] चाय की दुकानों आदि पर क्या खूब देखने को मिलता रहा है। हालांकि नवाबों की नगरी लखनऊ की तो ऐसे में शान ही निराली दिखाई पड़ती रही है। हालांकि वैसे तो अब नवाबों की इस नगरी में तमाम नये इलाके बस चुके हैं और वहा भी ऐसे सिलसिले बखूबी देखे जा सकते हैं। लेकिन जो छटा पुराने लखनऊ के इलाकें में देखी जाती रही है उसकी तो बात ही निराली है।
पुराने लखनऊ में जहां नक्खास स्थित अकबरी गेट में रहीम और मुबीन के कुल्चे नहारी हों या फिर टुण्डे कबाबी के कबाब या फिर कश्मीरी चाय समेत लोगों की अपनी&अपनी पसंदीदा पान की दुकानें शाम होने के साथ ही जो गुलजार होती थीं तो फिर काफी हद तक सहरी के वक्त तक चहल पहल इन इलाकों में बनी ही रहती थी। इसके साथ ही मौलवीगंज, अमीनाबाद समेत नजीराबाद की देर रात तक बनी रहने वाली रौनक अफसोस कि इस बार देखने को नसीब न हो सकेगी। दरअसल इन इलाकों के आस पास के कुछ इलाके हॉट स्पॉट घोषित किये जाने के चलते सील करे जा चुके हैं। वहीं इसके साथ ही लॉक डाउन तो जारी है ही।
लॉकडाउन के चलते पहली बार रमजान के मौके पर स्थित प्रसिद्ध टुंडे कबाब की दुकान बंद है। 115 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब टुंडे कबाब की दुकान बंद है। पहली बार ऐसा होगा कि रमजान के महीने में दुकान बंद है और रोजेदारों को कवाब और अन्य व्यंजन नहीं मिल सकेंगे। जबकि वही इस बाबत लखनऊ के संभागीय आयुक्त मुकेश मेश्राम ने कहा कि हमने कोई बंद करने की पहल नहीं की। मांस की दुकानें बंद हैं क्योंकि उनमें से किसी ने भी एफएसडीए (खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन से अनिवार्य लाइसेंस नहीं प्राप्त किये हैं। जिसके चलते ही ऐसी मजबूरी उनके सामने है।
भले ही वक्त के साथ लोग अब मोबाइल और घड़ी के अलार्म को सहरी में जगने के लिए तरजीह देने लगे हों लेकिन कहीं.कहीं गाहे बगाहे आज भी रोजेदारों को सहरी के वक्त जगाने के लिए आवाज लगाने वाले अब भी बचे हुये हैं जिनमें से इक अलीगंज के डंडइया इलाके में भी इस काम को अंजाम देते रहे हैं। अहम बात ये है कि वो हिन्दू होकर भी सहरी के वक्त रोजेदारों को जगाने का काम जमाने से करते रहे हैं। इस बार वो भी अपने घरों में ही रहने को मजबूर होंगे। इस बार घूम घूमकर रोजेदारों को सहरी के वक्त जगाने वाले भी बाहर नही आ सकेंगे।
इस कोरोना की महामारी का आज ये असर है कि हर तरफ सन्नाटा पसरा है और अजब ही मंजर है। जिस तरह पूरी नवरात्रि भर और रामनवमी मे भी तमाम मंदिर सूने बने रहे। ठीक उसी तरह से आज माहे रमजान के दौरान भी मस्जिदें और बाजार सूने बने हुये हैं। हाल फिलहाल जिस तरह से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत तकरीबन सात जिलों की हालत है। उसे देखते कोई भी रियायत या ढील दिये जाने की संभावना नजर नही आ रही है।
यानि नवरात्रि और राम नवमी की ही तरह माहे रमजान और ईद की रौनक भी फीकी पड़ती साफ नजर आ रही है। कोरोना की महामारी का कुछ ऐसा है असर कि शहर दर शहर परेशां है हर बशर और चाह कर भी कुछ नही पा रहा है कर। हालांकि तमाम आलिम मौलानाओं ने भी साफ तौर पर सभी को हिदायत दी है कि वो कतई मस्जिदों में इक्टठे न हों बल्कि घरों में रह कर ही नमाज और तरावीह को अंजाम दें।
अगर नवाबों की नगरी के तमाम जानकारों और पुराने बाशिन्दों की मानें तो उनके मुताबिक ऐसा वो संभवतः पहली बार ही देखने को मजबूर है कि क्या नवरात्रि और रामनवमी बल्कि माहे रमजान में भी ऐसा मंजर नजर आ रहा है। क्योंकि फिलहाल आज तक उनकी जानकारी में ऐसा कभी न देखा न ही सुना मगर वक्त है कि अब देख भी लिया और जाने क्या क्या और देखने को मिलेगा।
भले ही फिलहाल 3 मई तक ही लॉकडाउन घोषित किया गया है लेकिन जो हालात सामने हैं उनको देखते ऐसा नही लगता कि उसके बाद कोई रियायत दी जा सकेगी बल्कि ऐसा लगता है कि अभी लॉकडाउन का वक्त आगे बढ़ाया जा सकता है। संभवतः हालातों को देखते ऐसा किया जाना न सिर्फ जरूरी है बल्कि मजबूरी भी है। पर इस सबके बीच इतना तो जरूर है कि जहां जाने कितने बच्चों की हसरतें दिलों में ही मचल कर रह जायेंगी।
वहीं तमाम कारोबारी जो इस महीने के दौरान अच्छा खासा कारोबार कर लेते थे। वो समझ नही पा रहे हैं कि करे तो क्या करें। क्योंकि माल तो वो उठा चुके हैं मगर अब उसे खपायें कहां और कैसे। अगर माल खपेगा नही तो पैसे कहां से आयेंगे जो जिन्दगी को चलाने और बकाया चुकाने के लिए बहुत ही जरूरी है। बहरहाल इक अजब कशमकश है जिस पर चाह कर भी नही कोई बस है।
अब तो बस उस ऊपरवाले से ही किसी चमत्कार की आस है। क्योंकि फिलहाल अभी तक कोराना की सटीक दवा नही किसी के पास है। इसलिये बस हौसला रखें, सावधानी बरतें अपना संघर्ष रखें जारी जल्द ही हार जायेगी कोरोना की ये महामारी। क्योंकि वक्त एक सा नही रहता है जल्द ही ये भी गुजर जायेगा और फिर से एक नया खुशनुमा सवेरा आयेगा। इस कैद से हम सभी आजद होंगे और फिर पहले जैसे नाशाद और आबाद होंगे।