नई दिल्ली। भाजपा लोकसभा चुनाव की तैयारियों के साथ ही साल के आखिर में होने वाले चार राज्यों के चुनावों के लिए बखूबी कमर कस चुकी है। जिसके तहत वो अब कोई भी कसर नही छोड़ना चाहती है इसीलिए भाजपा ने अब टिकट दावेदारों की बारीकी से छानबीन शुरू कर दी है। देखना है कि ये किस हद तक कारगर साबित होगा।
गौरतलब है कि भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन के लिए नए पैमाने तय किए गए हैं। हर संभावित उम्मीदवार का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जा रहा है। इसके लिए सभी सीटों पर एक सर्वे कराया जा रहा है। सर्वे के लिए सवालों का एक फॉर्मेट भी भेजा गया है।
इतना ही नही बल्कि इसके तहत मौजूदा विधायकों को दोबारा टिकट दिया जाए या नहीं? इस सवाल के लिए फॉर्मेट में एक हजार लोगों की राय लेनी होगी और इनमें से दो सौ लोगों के मोबाइल नंबर भी दर्ज किए जाएंगे। इस सूची की दोबारा जांच भी होगी। और आखिरकार इस सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर ही पार्टी यह निर्णय लेगी कि किसे टिकट दिया जाएगा।
अगर भाजपा से जुड़े विश्वस्त सूत्रों की मानें तो सर्वे का काम एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड्स, शिवराज के सिपाही, शोध इंडिया फाउंडेशन कर रही है। इसके साथ-साथ महाराष्ट्र की एक टीम भी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सक्रिय है।
इसके साथ ही भाजपा अध्यक्ष शाह ने गुजरात से 40 सेवानिवृत्त अधिकारियों की एक टीम भी मध्य प्रदेश में लगाई है जो अलग-अलग स्तरों पर फीडबैक ले रही है। खबरों के मुताबिक इन लोगों के बीच ‘पेराडाइम शिफ्ट’ जैसा एक शब्द भी जोर-शोर से चल रहा है। जिसका मतलब यह लगाया जा रहा है कि चुनाव को किसी विशेष मुद्दे की तरफ मोड़ा जा सकता है।
इन सात सवालों के आधार पर मिलेगा टिकट
- टिकट के इच्छुकों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप तो नहीं। उनका चरित्र और व्यवहार कैसा है। वे गुंडागर्दी या दबंगई तो नहीं करते। समाज के वर्ग के वोट बैंक पर उनका कब्जा है। उन्होंने विधायक निधि से पांच कौन से बड़े काम कराए।
- ऐसे 20 प्रभावशाली लोगों की मोबाइल नंबर समेत जानकारी, जो कम से कम दो हजार वोटों पर प्रभाव डालते हों। कोई नामचीन गुंडा, जिसके कहने पर लोग वोट करते हैं।
- प्रत्याशी इस बार कितने वोटों से हार या जीत सकते हैं। उनके परिवार का कोई सदस्य भाजपा विरोधी तो नहीं। पार्टी में उनके कितने दोस्त हैं और कितने विरोधी। उनका राजनीतिक गुरू कौन है?
- स्थानीय लोगों, पड़ोसियों और चाय दुकान वालों से पूछताछ की जाएगी कि लोगों के काम होते हैं या नहीं। किसी जाति विशेष की मदद तो नहीं करते। किसी अस्पताल, स्कूल या ट्रस्ट का संचालन तो नहीं करते। कांग्रेसियों के काम तो जल्दी नहीं होते।
- एक हजार लोगों की राय ली जाएगी कि विधायक को दोबारा टिकट दिया जाए या नहीं। इसमें से 20 फीसदी लोगों के मोबाइल नंबर भी दर्ज किए जाएंगे।
- चुनावी सीट के 10 से 15 ऐसे नाम जो चुनाव लड़ सकते हैं या उसकी क्षमता रखते हैं। उनकी क्षेत्र में पकड़ कितनी है।
- क्षेत्र के तमाम अधिकारी और उनके मोबाइल नंबर के साथ चैनल व मीडिया के लोगों के नाम और नंबर।