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न्यूनतम बैलेंस के नाम पर बैंकों ने 4 साल में वसूले 11,500 करोड़

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नयी दिल्ली! निर्धारित मिनिमम बैंलेंस न रखने पर बैंक अपने आप पेनाल्टी के रूप में आपके अकाउंट से पैसा काट लेते हैं और इस थोड़ी-सी रकम पर आप गौर भी नहीं करते. लेकिन आपको यह जानकर अचरज होगा कि बचत खातों की ऐसी ही छोटी-छोटी कटौतियों से पिछले चार साल में बैंकों ने 11,500 करोड़ रुपये की कमाई कर ली है. वित्त मंत्रालय के एक सूत्र के मुताबिक पिछले चार साल (वित्त वर्ष 2014-15 से 2017-18 के बीच) में 21 सार्वजनिक बैंकों और निजी क्षेत्र के तीन दिग्गज बैंकों ने बचत खातों में मिनिमम बैलेंस न रख पाने वाले ग्राहकों से कुल 11,500 करोड़ रुपये की कमाई की है.

सबसे ज्यादा कमाई स्टेट बैंक की सिर्फ पिछले एक साल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने न्यूनतम बैंलेंस न रखने पर मिलने वाले पेनाल्टी से 3,551 करोड़ रुपये की कमाई की है. देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने 2017-18 में इस मद में 2,500 करोड़ रुपये की कमाई की है. निजी क्षेत्र के दिग्गज एचडीएफसी बैंक ने इस दौरान 600 करोड़ रुपये की कमाई की है. गौरतलब है कि बड़े-बड़े डिफाल्टर्स की वजह से बैंकों का एनपीए साल 2017-18 में बढ़कर 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है.

बैंक इनसे अपना बकाया वसूलने में नाकाम रहे हैं. लेकिन बचत खाता धारक यदि न्यूनतम बैंलेंस एक महीने भी नहीं रख पाता तो उसकी अच्छी खासी रकम काट ली जाती है. बैंकों का कहना है कि ये चार्ज खातों को चलाने के लिए जरूरी खर्च निकालने के लिए लगाए जाते हैं.

मजे की बात है कि न्यूनतम बैलेंस न रख पाने के एकसमान ‘अपराध’ के लिए अलग-अलग जुर्माना वसूल रहे हैं. उदाहरण के लिए एसबीआई अपने बचत खाता धारकों से न्यूनतम बैलेंस न रखने पर 5 से 15 रुपये (साथ में जीएसटी) काटता है. मेट्रो शहरों के एसबीआई ग्राहकों को हर महीने खाते में न्यूनतम 3,000 रुपये का बैलेंस रखना होता है. छोटे शहरों में हर महीने 2,000 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 1,000 रुपये रखने की शर्त होती है. दूसरी तरफ, एचडीएफसी बैंक के ग्राहकों को बड़े शहरों में हर महीने खाते में 10,000 रुपये, छोटे शहरों में 5,000 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 2,500 रुपये रखने की शर्त होती है.

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