डेस्क। विजयदशमी यानि असत्य पर सत्य तथा बुराई पर अच्छाई की विजय का पावन पर्व वैसे तो हर्षोल्लास के साथ पूरे देश में ही मनाया जा रहा है। वहीं इस पर्व पर अनेक धार्मिक किवदंतियां भी जुड़ी हैं। मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि विजयदशमी के दिन नीलकंठ पक्षी और कछुए को देखना शुभ माना जाता है। दशहरा एक ऐसा त्योहार है जिसमें लोग अपनी छतों, बगीचों के आसपास नीलकंठ पक्षी को निहारते हैं।
दरअसल कहा जाता है कि जब श्रीराम रावण का वध करने जा रहे थे। उसी दौरान उन्हें नीलकंठ के दर्शन हुए थे। इसके बाद श्रीराम को रावण पर विजय मिली थी। यही वजह है कि नीलकंठ का दिखना शुभ माना गया है। इतना ही नही बल्कि जल और थल दोनों जगहों पर निवास करने वाले जीव कछुए को केवल स्पर्श करने से ही लोगों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
वहीं उत्तर प्रदेश के जनपद कानपुर में इन मान्यताओं का निर्वहन करते हुए सदैव की भांति ही इस बार भी विजयदशमी का त्योहार विशेष रूप से मनाया जा रहा है। जिसके तहत परेड रामलीला मैदान के पास बने शमी वृक्ष पर कलावा बांधकर लोगों ने मन्नत मांगी। इसके बाद नीलकंठ और कुछुए के दर्शन किये गए। जनश्रुति तो और भी हैं लेकिन कई स्थानों पर दोनों बातों का विशेष महत्व है। रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की विशेष परम्परा है। ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी को व्यक्त करते हैं औरकि पान का पत्ता मान और सम्मान का प्रतीक है। इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है।
इस दिन सभी अपने शस्त्रों का पूजन करते है। सबसे पहले शस्त्रों के ऊपर जल छिड़क कर पवित्र किया जाता है फिर महाकाली स्तोत्र का पाठ कर शस्त्रों पर कुंकुम, हल्दी का तिलक लगाकर हार पुष्पों से श्रृंगार कर धूप-दीप कर मीठा भोग लगाया जाता है। शाम को रावण के पुतले का दहन कर विजया दशमी का पर्व मनाया जाता है। इतना ही नही बल्कि कानपुर में रावण मंदिर जो दशहरे वाले दिन ही खुलता है। यहां कुछ लोग रावण की पूजा करते हैं। जबकि जोधपुर में रावण की ससुराल है। वो यहां का दामाद है। वहीं नोएडा के गौतमबुद्धनगर जिले के बिसरख गांव में भी रावण का मंदिर है। मान्यता है कि बिसरख रावण का ननिहाल था।
इसके अलावा मंदसौर में यहां रावण की पूजा की जाती है। मंदसौर नगर के खानपुरा क्षेत्र में रूण्डी नामक स्थान पर रावण की विशालकाय मूर्ति है। सबसे अहम और काबिले गौर बात है कि उज्जैन के चिखली ग्राम में तो मान्यता है कि यदि रावण को पूजा नहीं गया तो पूरा गांव जलकर भस्म हो जाएगा। इसी प्रकार से इटावा जिले की जसवंतनगर में दशहरा मनाने का अंदाज जरा निराला है। यहां दशहरे वाले दिन रावण की पूरे शहर में आरती उतार कर पूजा की जाती है। उसे जलाने की बजाय रावण को मार-मारकर उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं। लोग रावण के उन टुकड़ों को उठाकर घर ले जाते हैं। रावण की मौत के तेरहवें दिन रावण की तेरहवीं की जाती है।