नई दिल्ली! केंद्र सरकार ने पर्सनल फाइनैंस से जुड़े कई तरह के बदलाव किए हैं, जो एक अप्रैल से लागू होने जा रहे हैं. आपको इन बदलावों से परिचित होना बेहद जरूरी है, क्योंकि इसका सीधा आपसे संबंध है. ये बदलाव आप पर सीधा असर डालते हैं. जैसे पर्सनल फाइनैंस के नियमों से जुड़े बदलाव आपकी फाइनैंशल प्लानिंग पर असर डाल सकते हैं. टैक्स से जुड़े कुल नौ बदलावों पर आपको आने वाले वित्त वर्ष में ध्यान में रखने की जरूरत होगी.
1. पांच लाख तक की टैक्सेबल आय पर जीरो टैक्स केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट 2019 में पांच लाख रुपये की टैक्सेबल आय को टैक्स फ्री कर दिया है इसलिए अगर आपकी आय इस दायरे में आती है, तो आपको इनकम टैक्स देने की जरूरत नहीं होगी.
2. स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़कर 50,000 रुपये नए वित्त वर्ष में आप ज्यादा टैक्स बचा पाएंगे, क्योंकि अंतरिम बजट 2019 में केंद्र सरकार ने स्टैंडर्ड डिडक्शन को 40 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दिया है. इस तरह इसमें 10 हजार रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है.
3. दूसरे मकान के नोशनल रेंट पर कोई टैक्स नहीं केंद्र सरकार की अंतरिम बजट की घोषणा के मुताबिक अगर आपके पास दो घर हैं और दूसरा घर खाली है तो उसे भी सेल्फ-ऑक्युपाइड (अपने ही अंदर) ही माना जाएगा और आपको नोशनल रेंट (काल्पनिक किराये) पर टैक्स नहीं देना होगा. वर्तमान में अगर आपके पास एक से अधिक घर हैं तो उनमें से एक ही घर सेल्फ-ऑक्युपाइड और दूसरा घर किराये पर दिया हुआ माना जाता है, जिसके नोशनल रेंट पर टैक्स देना पड़ता है.
4. टीडीएस की सीमा बढ़कर 40 हजार हुई ब्याज से होने वाली आय पर स्रोत पर कर की कटौती (टीडीएस) की सीमा सालाना 10 हजार रुपये से बढ़कर 40 हजार रुपये हो गई है. इससे उन वरिष्ठ लोगों तथा छोटे जमाकर्ताओं को फायदा होगा, जो बैंकों एवं डाकघरों की जमाराशि के ब्याज पर निर्भर करते हैं. अभी तक ये जमाकर्ता 10 हजार रुपये प्रति वर्ष तक की ब्याज आय पर कटे कर का रिफंड मांग सकते थे.
5. एक्सटर्नल बेंचमार्क से तय होगा लोन पर इंट्रेस्ट रेट रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पर्सनल लोन, होम लोन, कार लोन और एमएसएमई कर्ज पर ‘फ्लोटिंग’ (परिवर्तनीय) ब्याज दरें एक अप्रैल से रेपो रेट या सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश पर प्रतिफल जैसे बाहरी मानकों से संबद्ध कर दिया है. फिलहाल, बैंक अपने कर्ज की दरों को प्रधान उधारी दर (पीएलआर), मानक प्रधान उधारी दर (BPLR), आधार दर तथा अपने कोष की सीमांत लागत आधारित ब्याज दर (MCLR) जैसे आंतरिक मानकों के आधार पर तय करते हैं.
6. एक अप्रैल 2019 से फिजिकल शेयरों का ट्रांसफर नहीं जिन लोगों के पास लिस्टेड कंपनियों के शेयर फिजिकल फॉर्म में हैं, वे एक अप्रैल के बाद उन्हें न तो ट्रांसफर कर पाएंगे और न ही बेच पाएंगे. इससे पहले यह सीमा 5 दिसंबर 2018 थी. जून में सेबी ने लिस्टिंग ऑब्लिगेशंस एंड डिसक्लोजर रिक्वायरमेंट्स (एलओडीआर) रेग्युलेशंस में बदलाव किया था. अभी 3.33 लाख करोड़ या देश में लिस्टेड कंपनियों के कुल मार्केट कैप का 2.3 पर्सेंट हिस्सा फिजिकल शेयरों के रूप में है. कई निवेशकों, खासतौर पर बुजुर्गों को अब फिजिकल शेयरों को डीमैट फॉर्म में बदलना पड़ेगा, तभी वे उन्हें ट्रांसफर कर पाएंगे या बेच पाएंगे.
7. हाउजिंग सेक्टर के लिए जीएसटी की नई दरें और नियम जीएसटी काउंसिल ने 24 फरवरी 2019 को अपनी 33वीं बैठक में और उसके बाद स्पष्टीकरण में रियल एस्टेट सेक्टर के लिए जीएसटी की नई दरें जारी की हैं, जो एक अप्रैल 2019 से लागू हो जाएंगी. एक अप्रैल 2019 से निर्माणाधीन प्रॉजेक्ट्स पर डेवलपर्स और बिल्डर्स के पास जीएसटी के दो विकल्प होंगे. या तो वे इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा के साथ 12 फीसदी जीएसटी का विकल्प चुनेंगे या फिर इनपुट टैक्स क्रेडिट के बिना पांच फीसदी जीएसटी के विकल्प का चयन करेंगे. किफायती मकानों के संदर्भ में जीएसटी की दर इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ आठ फीसदी और इनपुट टैक्स क्रेडिट के बिना एक फीसदी होगी. एक अप्रैल 2019 से शुरू होने वाले किसी भी नए प्रोजेक्ट पर जीएसटी की नई दरें लागू करना अनिवार्य होगा.
8. कैपिटल गेन का दो रिहायशी मकानों में निवेश के लाभ वैसे टैक्सपेयर्स जो अपना मकान बेच चुके हैं, उनके पास टैक्स से बचने के लिए अपनी एलटीसीजी को एक मकान के बदले दो मकानों में निवेश करने का विकल्प होगा. हालांकि, आपको यह बात पता होनी चाहिए कि एलटीसीजी की रकम दो करोड़ रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए और इसका फायदा आप जीवन में एक बार ही उठा सकते हैं.
9. इक्विटी एलटीसीजी टैक्सेशन बदला इक्विटी शेयर और इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंड पर एलटीसीजी की घोषणा 2018 के बजट में की गई थी इसलिए अगर आपने उन इक्विटी शेयर्स और/या इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंड्स को वित्त वर्ष 2018-19 में बेचा है और अगर उसे आपने एक साल से अधिक वक्त तक अपने पास रखा है तो उसपर आपको वित्त वर्ष 2018-19 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त टैक्स का भुगतान करना होगा. अगर यह लाभ एक लाख रुपये से अधिक होगा तो एलटीसीजी पर 10 फीसदी की दर से टैक्स लगेगा और इसपर इंडेक्सेशन का फायदा नहीं मिलेगा.