लंदन. ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कोरोना की वैक्सीन का सबसे बड़ा परीक्षण शुरू हो गया है. शोधकर्ता एक माह में 200 अस्पतालों में पांच हजार से ज्यादा लोगों पर टीके का परीक्षण करेंगे. इस टीके की सफलता की 80 फीसदी संभावना है.
पशुओं पर इसका परीक्षण बेहद सफल रहा है. पहले परीक्षण में दो लोगों को टीका लगाया गया है, इनमें एलिसा ग्रेनाटो नामक महिला वैज्ञानिक भी शामिल हैं. अगर यह परीक्षण सफल रहता है तो करीब दो लाख लोगों की जान लेने वाले वायरस के खात्मे का रामबाण इलाज दुनिया को मिल सकेगा और दोबारा यह महामारी सिर नहीं उठा सकेगी.
ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं ने चिंपैंजी में मिले ऐसे वायरस के जरिए तैयार टीके के पहले चरण में गुरुवार 23 अप्रैल को 18 से 55 साल के 510 वालंटियर को खुराक दी. शोध निदेशक प्रोफेसर सारा गिलबर्ट का दावा है कि टीके का इंसानों पर कोई शारीरिक दुष्प्रभाव नहीं होगा. जून में प्रारंभिक नतीजों के बाद सितंबर तक टीके की करीब दस लाख खुराक तैयार की जाएंगी, जिससे मंजूरी मिलने के बाद तेजी से इसे बांटा जा सके. यूनिवर्सिटी का दावा है कि टीका छह माह में तैयार हो सकता है, क्योंकि यह कोरोना के सार्स जैसे पहले वायरस से काफी मेल खाता है.
जर्मनी में भी बायोनटेक और अमेरिकी कंपनी फाइजर द्वारा तैयार टीके को भी बुधवार मनुष्यों पर परीक्षण करने की मिल गई थी. जर्मन कंपनी परीक्षण के पहले चरण में 18 से 55 साल के 200 वालंटियर को खुराक देगी. दुनिया भर में 70 देशों के 150 से ज्यादा शोध संस्थान और कंपनियां टीके के विकास में जुटे हैं, लेकिन जर्मनी और ब्रिटेन समेत पांच ही ऐसी परियोजनाएं हैं, जिन्हें पशुओं के बाद मानवों पर परीक्षण को मंजूरी मिल चुकी है.
जुलाई-अगस्त तक अमेरिका में भी यह परीक्षण शुरू हो जाएगा. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि किसी बीमारी का टीका तैयार होने में कम से कम एक से डेढ़ साल का वक्त लगता है. प्रयोगशाला और पशुओं के बाद तीन स्तर पर मनुष्यों पर भी टीके का परीक्षण होता है. इसके बाद उस देश की दवा नियामक एजेंसी की भी मंजूरी ली जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि दुष्प्रभावों पर ध्यान दिए बिना जल्दबाजी में तैयार दवा या टीका ज्यादा घातक हो सकता है. जैसा कि इबोला के टीके के मामले में हुआ था.