उत्तर प्रदेश में आम के किसानों को दोहरी मार पड़ी है. कोरोना काल ने आम के किसानों को बेहाल कर दिया है. लॉकडाउन की वजह से बागों में ना तो दवाईयों का छिड़काव ठीक से हो पाया और ना ही मज़दूर मिल पाए. ऊपर से तूफान और बारिश ने आम की फसल को बर्बाद कर दिया. मलीहाबाद के किसानों का कहना है कि इस बार सिर्फ 25 फीसदी की आम की पैदावार हुई है.
बगीचे का आम बिकता है तो घर में खाना पकता है. बगीचे का आम बिकता है तो परिवार के कपड़े का इंतज़ाम होता है. बगीजे का आम बिकता है तो दवाओं के लिए पैसों का इंतज़ाम होता है और इस आम के लिए किसान साल भर मेहनत करता है ताकि परिवार की रोज़ी रोटी का इंतज़ाम कर सके. लेकिन इस बार आम के किसानों पर ऐसी दोहरी मार पड़ी है कि किसान कराह उठा है. एक तरफ लॉकडाउन और दूसरी तरफ आसमानी आफत. इस डबल अटैक ने मलीहाबद के बागों को बर्बाद कर दिया. किसान सिर पकड़ कर बैठे हैं, अब आगे क्या होगा.
उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद को अपने आम उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूर-दूर से लोग यहां आम खरीदने आते हैं. मलीहाबाद के ज़्यादातर किसान की जीविका इसी आम पर ही निर्भर है. लेकिन इस बार भारी बारिश और तूफान ने साल भर की मेहनत पर पानी फेर दिया. वक्त से पहले ही आम टूट-टूटकर ज़मीन पर गिर गए, जिसे ना तो किसान बाज़ार में बेच सकता है और ना ही इसे पकने के लिए रख सकता है.
एक तरफ मौसम की मार और दूसरी तरफ लॉकडाउन ने आम के किसानों की कमर तोड़ दी. किसानों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से किटनाशक दवाईंयां मिल नहीं पाईं और जो दवाई मिली वो नकली थी, जिसके छिड़काव के बाद कोई असर नहीं हुआ. नतीजा ये हुआ कि आम जिस साइज़ का होना चाहिए उतना हुआ नहीं. ज़्यादा तरह आम टिकोरा ही रह गए, जो किसानों के किसी भी काम नहीं आ सकते हैं. ऊपर से बारिश और तूफान ने रही सही कसर पूरी कर दी. किसान परेशान हैं की आखिर करें तो अब क्या करें. आम की फसल इतनी खराब हो गई की एक पाव का आम पचास ग्राम और और 100 ग्राम से ज़्यादा का नहीं हो पाया.
किसानों के
सामने अब कई तरह की मुश्किलें खड़ी हैं. किसानों का कहना है कि इस बार
ज़्यादातर बागों में 25% फीसदी ही आम की पैदावार हुई है. एक तो लॉकडाउन की
वजह से खरीदार नहीं मिल रहा है, दूसरी तरफ अगर इसी तरह से लॉकडाउन बढ़ता
रहा है को आम बगीचे में ही सड़ जाएगा. क्योंकि आम की फसल को ज़्यादा दिनों
तक नहीं रोका जा सकता है. किसानों का कहना है कि वो मंडी तक आम पहुंचा नहीं
सकते हैं और तो और गांव के लोग दूसरे गांव के लोगों को कोरोना के चलते
घुसने नहीं देते हैं. ऐसे में आम के किसान जाएं तो कहां जाएं, बेचें तो
कैसे बेचें.
उत्तरप्रदेश में करीब 2.5 लाख हेक्टेयर में आम के बाग हैं. लॉकडाउन के कारण
इस बार ये सूने पड़े हैं. लॉकडाउन की वजह से आम तोड़ने के लिए न मजदूर मिल
रहे, न मंडी तक ले जाने के लिए गाड़ियां. हर साल जनवरी-मार्च के बीच विदेश
से आम के ऑर्डर आ जाते हैं, इस बार एक भी ऑर्डर नहीं आया. खाड़ी देशों में
लगभग 60 टन आम हर साल भेजा जाता है. हर साल बाहरी देशों में लगभग 40 करोड़
रुपए का आम निर्यात होता है, लेकिन इस बार किसानों को ये नुकसान झेलना पड़
सकता है.