नई दिल्ली. चीन के बहकावे में आकर नेपाल ने भारत के खिलाफ मोर्चा तो खोल दिया, लेकिन अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा है. चीन से मिले घोखे के बाद नेपाल को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है. नेपाल अब भारत के सामने गिड़गिड़ाने को मजबूर है. नेपाल भारत के बातचीत के लिए बेताब है.
भारत ने जबरदस्त कूटनीति का नमूना पेश करते हुए सीमा विवाद के मुद्दे पर चीन और नेपाल को एकसाथ कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया. लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तनाव के बीच चीन ने जहां अचानक शांति का राग अलापना शुरू कर दिया है, तो नेपाल ने भी नक्शा विवाद मामले में विधेयक वापस ले लिया है.
नक्शे को कानूनी वैधता के लिए संसद में दो तिहाई समर्थन की जरूरत थी. नेपाली कांग्रेस ने सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री केपी ओली को इस बात से अवगत कराया था कि इस मामले में उसे कुछ और समय चाहिए. इसके बाद नए नक्शे की मंजूरी के लिए संविधान संशोधन बिल को संसद की कार्यसूची से हटा लिया गया.
नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली जब विवादित नक्शे से जुड़ा विधेयक नेपाली संसद में पास नहीं करवा पाए तो उनकी सारी हेकड़ी निकल गई. नेपाल अब भारत से बातचीत करने को बेताब है, लेकिन भारत ने साफ-साफ कहा है कि इस पूरे प्रकरण से दोनों देशों के बीच विश्वास का संकट पैदा हुआ है. बातचीत के लिए नेपाल को पहले भारत का विश्वास जीतना होगा.
अब नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा कि नेपाल का भारत से करीबी रिश्ता है और लिपुलेख और कालापानी का मुद्दा बातचीत के जरिए सुलझाया जाएगा. हालांकि भारत की तरफ से पहले ही साफ कर दिया गया है कि ये दोनों हिस्से भारत के अभिन्न अंग हैं और किसी दूसरे देश का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं जाएगा. हालांकि नेपाली सरकार द्वारा ये कहना है कि इस मुद्दे को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाया जा सकता है.
गौरतलब है कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को उत्तराखंड में लिपुलेख पास को धारचुला से जोडऩे वाली 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया और इसके बाद से ही नेपाल तिलमिलाया हुआ है और नेपाल के विरोध जताने के पीछे चीन की ही रणनीति है, क्योंकि ये मार्ग नेपाल के साथ ही तिब्बत को भारत से जोड़ता है.
नेपाल ने इस सड़क के उद्घाटन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया था कि यह नेपाली सीमा से होकर जाती है. नेपाल सरकार ने पिछले हफ्ते नेपाल का संशोधित राजनीतिक और प्रशासनिक नक्शा जारी किया था, जिसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को उसके भू-भाग में दर्शाया गया था. नेपाल के इस रूख के पीछे पूरा दिमाग चीन का है. जानकारों का कहना है कि ताजा घटनाक्रम भारत की कूटनीतिक जीत है.
लेकिन भारत को सजग रहते हुए इस मुद्दे से निपटना होगा. भारत ने कालापानी और लिपुलेख को शामिल कर बनाए गए नए नेपाली नक्शे को खारिज कर दिया था. भारत ने कहा था नेपाल बातचीत के लिए उपयुक्त माहौल बनाए.