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मुनाफाखोरी के बाजार में घटिया मास्क-सैनिटाइजर, पीपीई किट सब मौजूद,सरकारी तंत्र की आंखें बंद

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लखनऊ. देशवासियों को  कोरोना संक्रमण से कम से कम नुकसान हो, लोगों की सेहत और जान कैसे बचाई जाए, इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार सक्रिय हैं,तो राज्य सरकारें भी अपने-अपने हिसाब से कोरोना महामारी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. कोरोना के कारण देश के आर्थिक हालात काफी खराब हो गए हैं,लेकिन केन्द्र और तमाम राज्यों की सरकारें इसी कोशिश में लगी हैं कि कैसे कोरोना की जंग जीती जाए. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो दो टूक कह भी दिया था, ‘जान है तो जहान है.’ कुछ मौकापरस्त और अवसरवादी नेताओं की बात छोड़ दी जाए तो कोरोना काल में पहली बार ऐसा देश देखने को मिल रहा है कि पूरा देश एक साथ खड़ा है, लेकिन कोरोना के खिलाफ देशवासियों की जारी जंग में चंद नेताओं के साथ-साथ कुछ  व्यक्ति और संस्थाएं बड़ी बाधा बनती नजर आ रही हंै. जिसके चलते कोरोना से जिंदगी बचाने की जंग कमजोर पड़ सकती है. एक तरफ कुछ व्यापारी कोरोना काल में मोटी कमाई करने के चक्कर में खाद्य पदार्थो-दवाओं और अन्य जरूरी सामानों की  कालाबाजारी और मुनाफाखोरी पर उतर आए हैं तो दूसरी तरफ कोरोना से बचाव के लिए अचूक हथियार माने जाने वाले मास्क और सैनिटाइजर के नाम पर कुछ लोगों ने बाजार को घटिया मास्क और सैनिटाइजर से पाट दिया है. मुनाफाखोरी के चक्कर में इन लोगों और संस्थाओं ने बाजार में बड़ी तादात में ऐसे मास्क और सैनिटाइजर पहुंचा दिए जिसके प्रयोग से सुरक्षा तो दूर कोरोना की जद में आ जाने की संभवनाएं अधिक बढ़़ जाती हंै. क्योंकि ऐसे मास्क पहनकर और सैनिटाइजर का प्रयोग करके आदमी अपने आप को सुरक्षित समझने की भूल कर बैठता है जो उसके लिए घातक साबित होता है. घटिया मास्क बनाने वालों ने उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में अपना जाल फैला लिया है.

सबसे दुख की बात यह है कि इस ओर से सरकारी मशीनरी पूरी तरह से आंखें मूंदे हुए है. घटिया मास्क या सैनिटाइजर बनाने वालों के खिलाफ जब युद्ध स्तर पर कार्रवाई होनी चाहिए तब इन नक्कालों को अपना धंधा फलने-फूलने का पूरा मौका दिया जा रहा है. वैसे यह कोई नई बात नहीं है. दशकों से देश में यही होता चला आ रहा है, भ्रष्टाचार को जाने-अनजाने उन सरकारी एजेंसियों का संरक्षण प्राप्त होता है, जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए फेस मास्क की मजबूत सुरक्षा कवच माना जा रहा है. इसी वजह से अधिकतर लोग मास्क इस्तेमाल भी कर रहे हैं,लेकिन उनके पास कोई ऐसा मापदंड नहीं है जिसके आधार पर वह यह समझ सकें कि वह जिस मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह कोराना से बचाव के लिए सुरक्षा कवच है भी या नहीं ? आम आदमी की बात तो दूर की है, नकली मास्क और सैनिटाइजर के धंधे से सबसे अधिक नुकसान उन लोगों को रहता है जो कोरोना पीड़ितों के सीधे सम्पर्क में आते रहते हैं. इसमें चिकित्सक,नर्सिंग स्टाफ, कोरोना वाॅरियर्स और पुलिस, एम्बुलेंस, सफाई वाले आदि शामिल रहते हैं. अक्सर इन लोगों के कोरोना पाॅजिटिव होने की खबरें आती भी रहती हैं. ऐसे में सवाल यही उठता है कि घटिया मास्क, पीपीई किट और सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने के चलते उक्त लोग कोरोना पाॅजिटिव तो नहीं हो जाते होंगे.

गौरतलब हो सरकार की तरफ से कोरोना महामारी के चलते लोगों को मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है, जो लोग मास्क का इस्तेमाल नहीं कर रहे है,उसके खिलाफ पुलिस कार्रवाई करके जुर्माना तक लगा रही है. ऐेसे में पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठते हैं, आखिर उसे भी तो यह पता होना चाहिए कि कैसे वह मास्क नहीं पहनने वालों पर जुर्माना ठोंके तो इसके साथ-साथ घटिया मास्क पहनने वालों को भी चेतावनी देती रहे. बाजार में बड़ी तादात में घटिया मास्क और सैनिटाइजर बिक्री के लिए मौजूद हैं,यह खबर  दिल दहलाने वाली हैं.  बाजार मंे उपलब्ध मास्क न सिर्फ मानक गुणवत्ता की दृष्टि से असुक्षित हैं बल्कि इन्हें कई गुना अधिक मनमानी कीमत पर बेच के भी आम आदमी को लूटा भी जा रहा है. मिशन कोरोना में लगे लोग जब एन-95 जैसे अतिसुरक्षित मास्क को खरीदने जाते हैं तो वह गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करते,इसके लिए वह अधिक कीमत भी देने को तैयार रहते हैं,लेकिन उन्हें क्या पता ऊपर से खूबसूरत दिखने वाले मास्क अंदर से खतरनाक होते हैं. अक्सर इसी भ्रम में लोग फंस जाते हैं.

आज की तारीख में बाजार में एन-95 से लेकर रंग-बिरंगं आकर्षक मास्क उपलब्ध है और लोग बड़ी कीमत पर इन्हें खरीद रहे है. इनमें अधिकतर लोग स्वाभाविक रूप से नहीं जान पाते कि उन्हें अच्छी-खासी रकम चुकाकर जो मास्क खरीद है, वह न सिर्फ दिखावा है, बल्कि कई मामलों में नुकसानदायी  भी है. विडंबना  है कि सरकारी मशीनरी ने कोरोना नियंत्रण से जुड़े इस महत्वपूर्ण पहलू को पूरी तरह नजरअंदाज कर रखा है. उसकी आंख तो तभी खुलती है जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है या फि मुख्यमंत्री उनके ऊपर ‘डंडा’ लेकर खड़े हो जाते हैं. तमाम मामलों में ऐसा होते देखा गया है.

बहरहाल,योगी सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. कोरोना से निपटने के लिए जरूरी मास्क, सैनिटाइजर, पीपीई किट की नकली बिक्री न हो इसके लिए सरकार को औषधि नियंत्रण एजेंसियों के जरिये मास्क की गुणवत्ता और कीमतों का परीक्षण लगातार करवाते रहना चाहिए. जांच एजंेसियों को ऐसे मास्क आपूर्तिकर्ताओं के चेहरे सामने लाने चाहिए जो इस संकटकाल में भी धोखाधड़ी और मुनाफाखोरी में लगे हैं. ऐसे लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करके इनको जेल भेज देना चाहिए. इससे पूर्व कोविड टेस्टिंग किट और पीपीई किट की भी घटिया गुणवत्ता के मामले सामने आ चुके हैं. कोरोना के खिलाफ जंग में जब लाखों साधारण आयवर्ग के लोग सीमित संसाधनों में जरूरतमंदों की मदद का हौसला दिखा रहे हैं, ऐसे वक्त सुरक्षा कवच मानी जा रही सामग्री की गुणवत्ता और कीमतों में धोखाधड़ी करने वाले कारोबारियों के आचरण को गंभीर अपराध माना जाना चाहिए. आम आदमी के लिए इस सामग्री की गुणवत्ता का आकलन करना मुश्किल है, इसलिए जांच एजेंसियों को इसके लिए स्वतः स्फूर्त पहल करनी चाहिए. 

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