लखनऊ. प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद से अपराधियों का सफाया लगातार जारी है. बीते साढ़े तीन साल में पुलिस मुठभेड़ में 124 अपराधी मारे गए. इनमें 47 अल्पसंख्यक, 11 ब्राह्मण और 8 यादव थे. अल्पसंख्यक समुदाय के ज्यादातर अपराधी पश्चिमी यूपी के थे. वहीं, शेष 58 अपराधियों में ठाकुर, वैश्य, पिछड़े, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बदमाश शामिल थे. दरअसल, बिकरू कांड के मुख्य आरोपी विकास दुबे और कृष्णानंद राय हत्याकांड में शामिल रहे.
राकेश पांडेय के एनकाउंटर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि पुलिस जाति विशेष के लोगों का ही एनकाउंटर कर रही है और फर्जी आंकड़े दिए जा रहे हैं. इसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि 31 मार्च 2017 से लेकर 9 अगस्त 2020 तक हुए पुलिस एनकाउंटर में ब्राह्मण जाति के 11 अपराधी मुठभेड़ में मारे गए. इनमें सात बीते डेढ़ महीने में ढेर किए गए. एक अपराधी बस्ती और दो लखनऊ व छह कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल थे. इनका एनकाउंटर जुलाई में हुआ था.
मेरठ में सर्वाधिक मुठभेड़, मारे गए 14 अपराधी
मुठभेड़ की सर्वाधिक घटनाएं मेरठ में हुईं. यहां 14 अपराधी मारे गए. दूसरे नंबर पर मुजफ्फरनगर रहा, जहां 11 अपराधी मारे गए. सहारनपुर में 9, आजमगढ़ में 7 और शामली में 5 अपराधी पुलिस मुठभेड़ में ढेर हुए.
अपराधियों का नहीं होता जाति और धर्म: डीजीपी
डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी ने पुलिस पर विशेष वर्ग के लोगों के एनकाउंटर किए जाने के आरोप पर कहा कि इस तरह के आरोप बेबुनियाद हैं. अपराधियों की कोई जाति और धर्म नहीं होता है. पुलिस एनकाउंटर में मारे गए सभी का आपराधिक इतिहास रहा है. कई तो पुलिस कर्मियों की हत्या में शामिल थे.