डेस्क। UP राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने नौवां उम्मीदवार खड़ा करके एक तीर से कई निशाने साधने की कूटनीतिक चाल चली है क्योंकि अगर जानकारों की मानें तो वैसे तो उसकी आठ सीटें तो निश्चित तौर पर जीती थीं लेकिन नौंवा उम्मीदवार उसने बेहद अपने गेम प्लान के तहत उतारा है इस दांव में भाजपा को कुछ गंवाना तो था नही बल्कि पाने को बहुत कुछ था। वहीं हाल के बने सपा-बसपा गठबंधन के लिए यह गले की फांस साबित होगा।
जैसा कि साफ जाहिर है कि बसपा ने उपचुनाव में अपना हक अदा कर सपा के दोनों ही उम्मीदवारों को बखूबी जीत हासिल करा दी लेकिन अब बारी सपा की है और अगर इस मौके पर सपा के विधायकों की क्रास वोटिंग के चलते बसपा का उम्मीदवार हार जाता है तो फिर कहीं न कहीं ताजे बने गठबंधन के रिश्ते में काफी हद तक खटास आना स्वाभाविक है और बसपा को भी लगेगा कि हमने तो आम चुनाव में इनके दो लोगों को पार लगा दिया और यह इतने खास चुनाव में हमारा एक उम्मीदवार पार न लगा पाऐ।
इतना ही नही जैसा कि उप्र में राज्यसभा चुनाव को लेकर गहराए वोटिंग संकट में अर्से बाद समाजवादी कुनबा एकजुट नजर आया। मतदान से एक दिन पहले गुरुवार को शाम ताज होटल में अखिलेश यादव की मुश्किल आसान करने के लिए सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के साथ रामगोपाल यादव भी पहुंचे। रात्रिभोज में प्रत्याशी जया बच्चन के साथ डिंपल यादव भी मौजूद रहीं।
इस मौके पर अखिलेश ने वोटिंग का तरीका समझाते हुए विधायकों को एक साथ रहने की सलाह दी। गुरुवार को रात्रिभोज में आजम खां व उनके पुत्र अब्दुला भी शामिल हुए। शिवपाल व मुलायम के साथ रामगोपाल यादव को एक साथ देख सपाइयों के चेहरे चमक रहे थे। शिवपाल भी बुधवार के रात्रिभोज की अपेक्षा कहीं ज्यादा सहज दिखे। उनकी अखिलेश से कई बार बातचीत भी हुई।
एक तरह से खासकर महज इसी अहम चुनाव के लिए ही इतने लम्बे समय से समाजवादी कुनबे में जमी कलह की बर्फ कुछ पिघलना शुरू हुई है और काफी हद तक शिवपाल को वापस अहमियत दी गई है अगर गठबंधन का नौंवा उम्मीदवार जीतता है तो जाहिर है कुनबे की कलह काफी हद तक सामन्य हो जायेगी और यह भाजपा कतई नही चाहेगी। क्योंकि आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव उसके लिए वैसे ही अग्नि परीक्षा से कम नही है ऐसे में अगर सपा में कुनबे की कलह समाप्त हो गई तो भाजपा को देश के सबसे अहम सूबे में काफी दिक्कतें पैदा हो जायेगीं।