डेस्क। जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे तमाम भाजपा विरोधी दल लामबंद होते जा रहे हैं क्योंकि अब काफी हद तक यह सबके समझ में आने लगा है कि अगर आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराना है तो आपस में तालमेल बनाना होगा बिना उसके भाजपा से पार पाना संभव नही है इसी के चलते जहां ममता बनर्जी तो अपनी कोशिशों में जुटी ही हैं वहीं हाल में कांगेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी तेजी से अब इसी कोशिश में जुट गये हैं। जिसके बेहतर नतीजे भी अब सामने आने लगे हैं। जिसके तहत कांग्रेस अध्यक्ष विपक्षी पार्टियों के प्रमुख नेताओं से बैठकें कर रहे हैं।
वह नहीं चाहते कि उनकी मुलाकातें सार्वजनिक रूप में प्रचारित हो इस लिए वह इन मुलाकातों को महज शिष्टाचार भेंट बता रहे हैं। मुख्य रूप से वह माइक्रोप्लानिंग और राज्य-दर-राज्य पर ध्यान दे रहे हैं। इसी के चलते उन्होंने जब पिछले महीने शरद पवार से मुलाकात की तो इसे शिष्टाचार भेंट बताया गया। जबकि सूत्रों और जानकारों का मानना है कि राहुल इस संबंध ने पवार से कहा कि वह एक बड़े नेता हैं।वह अन्य दलों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं इसलिए उन्हें इस संबंध में पहल करनी चाहिए। वह समान विचारधारा वाली पार्टियों से बात करें ताकि भाजपा के खिलाफ अगले लोकसभा चुनाव एकजुट होकर लड़े जा सकें।
जैसा कि सूत्रों का मानना है कि राहुल की कवायद रंग भी लाई जिसके चलते इस चर्चा के दौरान दोनों इस बात पर राजी हुए कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव मिलकर लड़ेंगे। बैठक में सीटों के बंटवारे के फार्मूले पर कोई चर्चा नहीं हुई क्योंकि चुनाव होने में अभी एक वर्ष बाकी पड़ा है। महाराष्ट्र में दोनों पार्टियां पिछले 15 वर्षों से सांझीदार रही हैं इसलिए अल्पकालीन नोटिस में भी समझौता करने में कोई समस्या नहीं होगी। वार्ता में भाग लेने वाले सूत्रों ने यह जानकारी दी। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 26 और राकांपा ने 22 सीटों पर अतीत में चुनाव लड़ा था। यह भी फैसला किया गया है कि दोनों पार्टियां राज्य में होने वाले 2 उपचुनाव मिलकर लड़ेंगी और दोनों एक-एक सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा करेंगी।
गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में भाजपा की हार से उत्साहित दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ेंगी और 2019 के लोकसभा चुनावों में पहले के ही फार्मूले का अनुसरण करेंगी। हालांकि फिलहाल राहुल सीटों के गणित पर कोई विशेष ध्यान नही दे रहे हैं क्योंकि उनका लक्ष्य स्पष्ट है कि मोदी को हर कीमत पर हटाना है। इस बात पर भी सहमति हुई है कि मुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी का होगा और संभवत: कांग्रेस की तरफ से अशोक चव्हाण ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। राकांपा को अशोक चव्हाण के मुख्यमंत्री बनने पर कोई आपत्ति नहीं मगर पृथ्वीराज चव्हाण को लेकर उसको कुछ आपत्तियां हैं। उसका कहना है कि 2014 में राकांपा-कांग्रेस गठबंधन तोड़ने के लिए वह ही जिम्मेदार थे।