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मेधा पाटकर ने उठाया राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त बाबाओं की योग्यता पर सवाल

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इंदौर! नर्मदा बचाओ आंदोलन नेत्री मेधा पाटकर ने हाल ही में राज्यमंत्री का दर्जा पाने वाले बाबाओं की योग्यता पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि जिन बाबाओं को यह तक नहीं पता कि केचमेंट एरिया क्या होता है और पुनर्वास योजना किसे कहते हैं सरकार ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया. अब इन बाबाओं से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने सरकार पर जो आरोप लगाए थे उनका क्या हुआ. क्या राज्यमंत्री का दर्जा मिलने के बाद उनका समाधान हो गया.

पाटकर मंगलवार को इंदौर में आयोजित प्रेसवार्ता में बोल रही थीं. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समितियों ने सालों पहले आशंका व्यक्त कर दी थी कि बांधों की वजह से नर्मदा नदी और नर्मदा घाटी का विनाश हो सकता है. अब यह आशंका सही साबित हो रही है. 2017 में उनका संघर्ष लोगों को डूब से बचाने को लेकर था लेकिन आज नर्मदा घाटी ही सूख रही है. प्रदेश की सरकारें नर्मदा नदी को बड़ी-बड़ी कंपनियों की तरफ मोड़ने का षड़यंत्र रच रहे हैं.

पाटकर ने कहा कि हर रोज करोड़ों लीटर पानी बड़ी-बड़ी कंपनियों को दिया जा रहा है. विधानसभा में इसके संबंध में कोई चर्चा तकत नहीं होती. निमरनी स्थित सेंच्यूरी यार्न के बंद होने के बावजूद एक महीने में करीब सवा करोड़ लीटर पानी दिया गया. कंपनियों को नर्मदा का पानी देने के बाद अब सरकार लिंक परियोजनाओं के नाम पर प्रदेश की जनता को मूर्ख बना रही है. जिस वक्त बांध बनाए गए थे उस वक्त लिंक परियोजनाएं थी ही नहीं लेकिन अब इन बांधों का पानी लिंक परियोजनाओं के लिए दिया जा रहा है.

पाटकर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि गुजरात चुनाव के लिए सरकार ने जमकर नर्मदा का पानी बहाया. जिस वक्त गुजरात में लोकार्पण था उस वक्त 37 जिलों में सूखा था, लेकिन सरकार ने पानी देने में गुरेज नहीं किया. आज हालत यह है कि गुजरात में 100 किमी में नर्मदा लगभग सूखी पड़ी है. सरदार सरोवर भी क्रिकेट ग्राउंड बन गया है.

हाल ही में राज्यमंत्री का दर्जा पाने वाले बाबाओं की योग्यता पर सवाल उठाते हुए पाटकर ने कहा कि नर्मदा सेवा योजना के नाम पर दो हजार करोड़ खर्च करने के बावजूद जब कुछ नहीं हुआ तो सरकार ने बाबाओं का सहारा ले लिया. उन्होंने कंप्यूटर बाबा का नाम लेते हुआ कहा कि उनसे पूछा जाना चाहिए कि जो आरोप वो सरकार पर लगा रहे थे उनका क्या हुआ. क्या उनका समाधान हो गया.

पाटकर ने चुटकी लेते हुए कहा कि ऐसा ही रहा तो अगली राज्यसभा में साधुओं की भरमार हो जाएगी. जिन बाबाओं को यह नहीं पता कि नर्मदा कैसे बचाई जा सकती है उन्हें सरकार ने राज्यमंत्रा का दर्जा देकर नर्मदा बचाने की जिम्मेदारी सौंप दी. यह जनता के साथ धोखा है. मुख्यमंत्री को अपने फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए.

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