नई दिल्ली। देश की बेहद अहम जांच एजेंसी सीबीआई में जारी विवाद अब तकरीबन अपने चरम पर पहुंचने लगा है। क्योंकि जिस तरह से इस मामले में नित नए पेंचोखम सामने आ रहे हैं उससे ये सुलझने के बजाय और भी उलझता नजर आ रहा है।
गौरतलब है कि वैसे तो पहले ही एजेंसी के दो अफसर कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। वहीं अब केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ‘रातोंरात उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करने का केन्द्र का निर्णय जांच एजेन्सी की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने जैसा है जिसकी उच्च अधिकारियों के खिलाफ जांच हो सकता है कि सरकार की अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो।’ आलोक वर्मा ने कोर्ट में कहा कि केन्द्र और केन्द्रीय सतर्कता आयोग का कदम पूरी तरह से गैरकानूनी है और ऐसे हस्तक्षेप से इस प्रमुख जांच संस्था की स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता का क्षरण होता है।
वहीं सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली आलोक वर्मा की याचिका का बुधवार को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष उल्लेख किया गया। पीठ ने कहा कि याचिका पर 26 अक्टूबर को सुनवाई की जायेगी। याचिका में आलोक वर्मा ने कहा है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से अलग रखा जाये। इसी विभाग के अधिकार क्षेत्र में जांच एजेन्सी आती है और यह जांच ब्यूरो के स्वतंत्र रूप से काम करने को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
याचिका में कहा गया है कि सीबीआई से अपेक्षा की जाती है कि वह पूरी तरह से स्वतंत्र और स्वायत्तता के साथ काम करे और ऐसी स्थिति में कुछ ऐसे अवसर भी आते हैं जब उच्च पदाधिकारियों के मामलों की जांच वह दिशा नहीं लेती जिसकी सरकार अपेक्षा करती हो। आलोक वर्मा ने अपने और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच चल रहे आंतरिक मतभेद के मद्देनजर उन्हें सीबीआई प्रमुख के अधिकारों से वंचित करने और अवकाश पर भेजने के फैसले की आलोचना की।
इसके साथ ही उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा के 1986 बैच के अधिकारी और जांच ब्यूरो के संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को जांच एजेन्सी के मुखिया का प्रभार सौंपने के सरकार के फैसले को भी चुनौती दी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि अस्थाना द्वारा ‘पैदा की गयी अड़चनों और उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठाने के लिये साक्ष्य गढ़ने में उनकी भूमिका ने ही जांच ब्यूरो को उनके खिलाफ अलग से प्राथमिकी दर्ज करने के लिये बाध्य किया।’ अस्थाना ने इस प्राथमिकी को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है।