नई दिल्ली। एक तरफ पांच राज्यों के चुनावों के सर्वे में आने वाले रूझान से वैसे ही भाजपा और सरकार चिंतामग्न है वहीं चुनाव नतीजे आने के ऐन एक दिन पहले ही रिजर्व बैंक के गर्वनर उर्जित पटेल द्वारा इस्तीफा दिये जाने से हालात और भी गंभीर हो गये। हालांकि इस्तीफा देने के बाद पटेल ने कहा कि उन्होंने इस्तीफा व्यक्तिगत कारणों के चलते दिया है। लेकिन सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है और माना जा रहा है कि हाल की सरकार और आरबीआई के बीच चली खींचतान के चलते ऐसा हुआ है।
गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर उर्जित पटेल ने आज बड़े ही अप्रत्याशित तरीके से व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफा देने के बाद उर्जित पटेल ने कहा- व्यक्तिगत कारणों के चलते मैने वर्तमान पद (आरबीआई के गवर्नर) से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने का फैसला किया। वर्षों तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अलग पदों पर काम करना मेरे लिए सम्मान की बात रही है। पटेल आरबीआई के 24वें गवर्नर थे।
उर्जित पटेल द्वारा अचानक इस तरह से इस्तीफा दिये जाने से सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार काफी गर्म हो चला है। काफी हद तक ऐसा माना जा रहा है कि पटेल का इस्तीफा सरकार और आरबीआई के बीच जारी खींचतान का नतीजा है। क्योंकि जिस तरह से 26 अक्टूबर को केन्द्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने मुंबई में एडी श्रॉफ मेमोरियल व्याख्यान में अपने भाषण में कहा था कि, ‘जो सरकार केन्द्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करती उसे देर-सबेर वित्तीय बाजार के आक्रोश का सामना करना पड़ता है और बड़ी आर्थिक दुश्वारियां पेश आती हैं।’
इतना ही नही बल्कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी मंगलवार को सरकार द्वारा सावधानीपूर्वक विश्लेषण किए बिना केन्द्रीय बैंक के आपात रिजर्व को लेने के प्रति आगाह किया था। आरबीआई भी सरकार के रवैये को लेकर आक्रामक है। उसका कहना है कि क्या सरकार बैंक कि स्वायत्तता को खत्म करना चाहती है। इसके लिए उसने 2010 के अर्जेंटीना के वित्तीय बाजार का भी उदाहरण दिया है। ज्ञात हो कि पिछले महीने सरकार और आरबीआई के बीच कई मांगों को लेकर खींचतान चली। इनमें वित्तीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए केन्द्रीय बैंक रिजर्व राशि के बड़े हिस्से को सरकार को हस्तांतरित करना और बाजार में और तरलता लाना शामिल है।
पटेल के इस कदम से आरबीआई की स्वायत्ता पर असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि सरकार के पास एक तरह से केंद्रीय बैंक का पूरा नियंत्रण चला जाएगा। जिन कारणों से उर्जित पटेल को गवर्नर पद से इस्तीफा देना पड़ा उनमें सरकार द्वारा सेक्शन 7 का इस्तेमाल करने की बात कहना और छोटे उद्योगों के लिए लोन आसान बनाना, कर्ज और फंड की समस्या से जूझ रहे 11 सरकारी बैंकों को कर्ज देने से रोकने पर राहत और शैडो लेंडर्स को ज्यादा लिक्विडिटी देना शामिल है।
वहीं पटेल के इस कदम के बाबत सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि उर्जित पटेल का आरबीआई के गवर्नर पद से इस्तीफा देने से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। उनको जुलाई तक कम से कम रुकना चाहिए था। कम से कम प्रधानमंत्री को उनसे मिलकर बात करनी चाहिए थी। हालांकि वैसे तो हाल ही में सरकार ने संकेत दिए थे कि वह पटेल का इस्तीफा नहीं चाहती है लेकिन बैंक के साथ कुछ मुद्दों का समाधान जरूरी है। मोदी समर्थकों ने साफ कर दिया है कि नीति में बड़े स्तर पर बदलाव की जरूरत है।
जबकि जेटली ने कहा कि तेज ग्रोथ के लिए सिस्टम में पर्याप्त लिक्विडिटी जरूरी है। वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि अगर क्रेडिट पर्याप्त भी है तो सभी सेक्टर की सेहत का ध्यान रखना भी जरूरी है। वहीं गडकरी ने कहा कि आरबीआई की सख्त लोन प्रक्रिया के कारण बैंक देश भर में चल रहे तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को वित्तीय मदद नहीं दे रहे हैं। इसके चलते करीब 2 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट अटके हुए हैं। गडकरी का कहना है कि आरबीआई लोन की प्रक्रिया को मुश्किल बना रहा है जिससे इंफ्रा के लिए पैसे की किल्लत हो रही है।