नई दिल्ली। एक तरफ जहां देश एक जुट हो कर कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जूझने में जी जान से जुटा है वहीं ऐसे में भी कुछ राज्य के मुख्यमंत्री अब भी खतरे को देख भी उतने गंभीर नजर नही आ रहे हैं। जिसकी बानगी है जब तब जहां दूसरे राज्यों की तो दुश्वारी बढ़ ही ही रही है वहीं देश के लिये भी खासी दिक्कतें पैदा होना स्वाभाविक है। लॉकडाउन के दौरान जहां हाल ही में दिल्ली फिर गुजरात और फिर मुंबई में जो हालात देखने को मिले वैसा ही कुछ अब राजस्थान के कोटा में सामने आया है। जहां पिछले काफी दिनों से हजारों छात्र घर वापसी को लेकर परेशान और प्रयासरत थे जिसे देख राजस्थान की गहलोत सरकार ने भी इसका समर्थन कर उन्हें वापसी के लिए पास जारी कर दिये वहीं इस फैसले पर उत्तर प्रदेश और बिहार के मुख्यमंत्रियों की राजस्थान की गहलोत सरकार से ठन गई है।
गौरतलब है कि देश में फैले कोरोना महामारी के बीच बिहार और उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने कोटा गए हजारों छात्र लॉकडाउन में वहीं अटक गए हैं। करीब 35 हजार फंसे छात्रों की घर वापसी को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच कड़वाहट पैदा हो गई है। दरअसल, कोटा में फंसे छात्रों की घर वापसी को लेकर चर्चा कुछ दिन पहले ही चल रही थी, लेकिन विवाद तब बढ़ना शुरू हुआ, जब राजस्थान सरकार की ओर से इन छात्रों को अपने घर लौटने के लिए पास जारी किए जाने लगे। कुछ छात्र अपने गृह राज्य की सीमा पर पहुंचे तो उन्हें रोक दिया गया। इसके बाद बिहार सरकार ने केंद्र को तुरंत पत्र लिखकर कहा कि ये लॉकडाउन के नियमों के खिलाफ है, इसपर तुरंत कार्रवाई की जाए।
लॉकडाउन की वजह से कोटा में फंसे छात्रों ने अपने घर लौटने के लिए सोशल मीडिया पर मुहिम चलाई। कोटा में कोरोना का संक्रमण फैलने के बाद उन विद्यार्थियों को वहां से बाहर निकाल घर पहुंचाने की मांग उठने लगी है। मामले को तूल पकड़ता देख राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने छात्रों को वहां से जाने को स्वीकृति देने को तैयार हो गई है। सीएम गहलोत ने कहा है कि कोटा में मौजूद छात्रों को संबंधित राज्य सरकार की सहमति पर उनके गृह राज्यों में भेजा जा सकता है। जैसा कि यूपी सरकार ने कोटा में रहने वाले छात्रों को वापस बुलाने के लिए कदम उठाए हैं अन्य राज्य की सरकारें भी अपने यहां के छात्रों को बुला सकती हैं।
हालांकि वैसे तो राजस्थान सरकार की सहमति के बाद यूपी सरकार ने अपनी तीन सौ बसें कोटा भेजकर वहां फंसे अपने राज्य के छात्रों को निकाल रही है। घर लौटने की अफरा-तफरी के बीच सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गईं। छात्र जैसे-तैसे बस पर सवार होने लगे हैं। जिसको लेकर लॉकडाउन उल्लंघन एक अलग ही विवाद खड़ा हो गया है। लेकिन वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योगी सरकार के कोटा बस भेजने के फैसले को लॉकडाउन का माखौल उड़ाना बताया है। उन्होंने राजस्थान सरकार से बसों का परमिट वापस लेने तथा कोटा में ही विद्यार्थियों को सुविधा व सुरक्षा देने की मांग की। नीतीश कुमार कई बार यह कह चुके हैं कि इस तरह से सड़क मार्ग से लोगों के आने-जाने से लॉकडाउन के साथ खिलवाड़ होता है।
ज्ञात हो कि कोटा में यूपी और बिहार के सबसे अधिक छात्र फंसे हुए हैं। सबसे अधिक उत्तर प्रदेश 7500 छात्र कोटा में फिलहाल रह रहे हैं। वहीं बिहार के 6500 छात्र भी लॉकडाउन की वजह से कोटा में फंसे हुए हैं। ज्यादातर विद्यार्थी कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के हॉस्टल और पीजी में रहते हैं। अकेले रह रहे लड़के-लड़कियों के लिए यह तनावभरा समय है।
वहीं योगी सरकार के इस कदम का बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्वागत किया है। मायावती ने कहा कि कोचिंग पढ़ने वाले लगभग 7,500 युवकों को लॉकडाउन से निकालने व उन्हें सुरक्षित घरो में भेजने के लिए यूपी सरकार ने काफी बसें कोटा, राजस्थान भेजी है। यह स्वागत योग्य कदम है। बीएसपी इसकी सराहना भी करती है। मायावती ने आगे ट्वीट में लिखा, ‘ लेकिन सरकार से यह भी आग्रह है कि वह ऐसी चिंता यहां के उन लाखों गरीब प्रवासी मज़दूर परिवारों के लिए भी ज़रूर दिखाए, जिन्हें अभी तक भी उनके घर से दूर नरकीय जीवन जीने को मजबूर किया जा रहा है।’
जबकि बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव ने सीएम नीतीश कुमार के नाम खुला पत्र लिखा है। पत्र में तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार पर सवाल उठाए हैं, साथ ही सरकार पर आरोप लगाए हैं कि प्रदेश के बाहर फंसे गरीब मजदूरों और छात्रों को सरकार ने बेसहारा छोड़ दिया है। तेजस्वी ने सवाल किया है कि बिहार सरकार आखिरकार अनिर्णय की स्थिति में क्यों है? प्रवासी मजबूर मजदूर और छात्रों से इतना बेरुखी भरा व्यवहार क्यों? उन्होंने कहा कि छात्र सरकार से लगातार घर वापसी के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सरकार को उनकी कोई फिक्र नही। आखिर उनके प्रति असंवेदनशीलता क्यों है?