वाशिंगटन. अमेरिका ने एकबार फिर दुनिया को अपना लोहा मनवा दिया है जिसके तहत अब वो चांद पर परमाणु रिएक्टर लगा रहा है. अमेरिका चांद पर पहला परमाणु रिएक्टर 2026 तक लगा लेगा.
16 दिसंबर को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नैशनल स्ट्रैटजी फॉर स्पेस न्यूक्लियर पावर ऐंड प्रपल्शन जारी की. नैशनल एयरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन से चांद की सतह पर एक फिजन सरफेस पावर प्रॉजेक्ट शुरू करने को कहा गया है.
इसकी क्षमता 40 किलोवॉट की होगी और यह पूरा सिस्टम चांद पर अमेरिका की लगातार मौजूदगी और मंगल के भावी दौरों को सपोर्ट करेगा. अमेरिका का डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी भी इस प्रॉजेक्ट पर काम करेगा.
राष्ट्रपति के आदेश में चांद की सतह के लिए मुफीद ईंधन के उत्पादन के लिए यूरेनियम फ्यूल प्रोसेसिंग क्षमता डिवेलप करने की जरूरत बताई गई है. साथ ही स्पेस न्यूक्लियर पावर ऐंड प्रपल्शन सिस्टम को सुरक्षित, गोपनीय और लंबे समय तक अंतरिक्ष में अमेरिका का प्रभुत्व बरकरार रखने के लिए भी इस्तेमाल करने की बात कही गई है.
हृ्रस््र की क्लेयर स्केली कह चुकी हैं कि एजेंसी ऐसा फ्लाइट हार्डवेयर सिस्टम तैयार करना चाहती है जो चांद की सतह से 2026 के आखिर तक इंटीग्रेट हो जाए. परमाणु रिएक्टर जिसे फिजन पावर सिस्टम कहते हैं, से भविष्य के चांद और मंगल से जुड़े रोबोटिक और इंसानी मिशंस को फायदा होगा. स्केली के मुताबिक, इन मिशंस के लिए सुरक्षित, प्रभावी और आसानी से उपलब्ध ऊर्जा अहम है और एक फिजन सरफेस पावर सिस्टम उन जरूरतों को पूरा करता है.
स्केली ने कहा कि फिजन सरफेस पावर सिस्टम पूरी तरह धरती पर बनेगा और असेम्बल किया जाएगा. इसके बाद इसे एक पेलोड की तरह लैंडर पर इंटीग्रेट किया जाएगा.
सिस्टम को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि एक बार लैंडर चांद की सतह पर पहुंचा तो ये खुद ही अपनी तैनाती और ऑपरेट कर लेगा. इसके चार प्रमुख सब-सिस्टम्स हैं जिनमें एक परमाणु रिएक्टर, एक इलेक्ट्रिक पावर कन्वर्जन यूनिट, हीट रिजेक्शन ऐरे, पावर मैनेजमेंट ऐंड डिस्ट्रीब्यूशन सब-सिस्टम शामिल हैं. यह सिस्टम 10 साल तक काम करने के लिए डिजाइन किया जाएगा.
स्केली ने कहा कि सभी सुरक्षा नियमों का सख्ती से पालन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि फिजन की प्रक्रिया धरती से एक कमांड पर तभी शुरू की जाएगी जब परमाणु सिस्टम चांद पर लैंड कर चुका होगा.
उन्होंने कहा कि ईंधन हटाने या रिप्लेस करने की कोई मंशा नहीं है और रिएक्टर पूरी तरह से एनकैप्सुलेटेड है तो वेस्ट कन्टेनमेंट की चिंता नहीं होगी. चांद की सतह पर किस जगह यह रिएक्टर रखा जाएगा, उसकी पहचान की जा रही है.