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कोविशील्ड को लेकर इस अध्ययन का दावा, कितना हकीकत है कितना छलावा?

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नई दिल्ली। कोविशील्ड को लेकर हालांकि पहले भी ऐसी सुगबुगाहट सामने आई थी कि कुछ लोगों में उसका असर बिलकुल न के बराबर रहा है। लेकिन अब एक ताजा अध्ययन ने भी काफी हद तक इस बात को फिर से बल दिया है कि काफी लोगों द्वारा कोविशील्ड टीके के दोनों डोज लगवाने के बाद भी उनमें एंटीबॉडी नही बने हैं। जो कि न सिर्फ बेहद गंभीर मामला है बल्कि चिंताजनक भी है।

गौरतलब है कि एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविशील्ड टीके की दोनों खुराक लगवा चुके लोगों के 16.1 फीसदी नमूनों में कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट (बी1.617.2) के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं पाई गईं। इसमें आगे कहा गया है कि जिन लोगों को कोविशील्ड टीके की एक खुराक दी गई, ऐसे लोगों के 58.1 फीसदी नमूनों में एंटीबॉडी नहीं देखने को मिली।

इस मामले में फिलहाल विशेषज्ञों का मानना है कि इस अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि भारत में शायद कुछ लोगों को कोविशील्ड की एक अतिरिक्त बूस्टर खुराक लेनी पड़े। अध्ययन में यह भी पता चला है कि टीके से बनी एंटीबॉडी के ट्राइटेस, जो कोरोना वायरस को निशाना बनाता है और उसे खत्म करता है, भारत में पहली लहर के दौरान बी1 स्ट्रेन की तुलना में डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले कम थे।

कोरोना के बी1 वेरिएंट के मुकाबले डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी टाइट्रेस उन लोगों में 78 फीसदी कम थी, जिन्होंने टीके की एक खुराक ली थी। वहीं, दोनों खुराक लेने वालों में यह 69 फीसदी कम थी। ऐसे लोगों में जो संक्रमित हो चुके थे, उनमें एक खुराक लेने वालों में 66 फीसदी और दोनों खुराक लेने वालों में 38 फीसदी कम एंटीबॉडी टाइट्रेस मिले।

तीसरी लहर में दूसरी लहर की तुलना में आधे मामले सामने आ सकते हैं- कोविड-19 महामारी मॉडलिंग से संबंधित एक सरकारी समिति के एक वैज्ञानिक ने कहा है कि अगर कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं किया जाता है, तो कोरोना वायरस की तीसरी लहर अक्तूबर-नवंबर के बीच चरम पर पहुंच सकती है। लेकिन, इस दौरान दूसरी लहर के दौरान दर्ज किए गए दैनिक मामलों के आधे मामले देखने को मिल सकते हैं।

‘सूत्र मॉडल’ या कोविड के गणितीय अनुमान पर काम कर रहे मनिंद्र अग्रवाल ने कहा कि यदि वायरस का कोई नया स्वरूप उत्पन्न होता है तो तीसरी लहर तेजी से फैल सकती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने पिछले साल गणितीय मॉडल का उपयोग कर कोरोना संक्रमण के मामलों में वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने के लिए समिति का गठन किया था।

समिति में आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक अग्रवाल के अलावा आईआईटी हैदराबाद के वैज्ञानिक एम विद्यासागर और एकीकृत रक्षा स्टाफ उप प्रमुख (मेडिकल) लेफ्टिनेंट जनरल माधुरी कानितकर भी हैं। इस समिति को कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर की सटीक प्रकृति का अनुमान नहीं लगाने के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा था।

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