नई दिल्ली. हॉकी को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय खेल घोषित किए जाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वाले वकील से कहा है कि आपका उद्देश्य अच्छा हो सकता है, लेकिन हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते और न ही ऐसा आदेश दे सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि आप चाहें तो सरकार को ज्ञापन दे सकते हैं.
दरअसल, टोक्यो ओलंपिक में महिला और पुरुष हॉकी टीम के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद हॉकी को अधिकारिक रूप से राष्ट्रीय खेल घोषित किए जाने की मांग उठने लगी है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई थी.
एथलेटिक्स में सुविधाएं बढ़ाने की भी मांग
याचिका दाखिल करने वाले वकील विशाल तिवारी ने मांग की थी कि एथलेटिक्स जैसे खेलों में सुविधाएं बढ़ाई जाएं और हॉकी को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जाए. याचिका में कहा गया था कि हॉकी को राष्ट्रीय खेल के रूप में जाना तो जाता ही है, लेकिन उसे अभी तक आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय खेल घोषित नहीं किया गया है. हॉकी भारत का गौरव है, जो अपनी पहचान खोता जा रहा है.
कैसे कहलाने लगा हॉकी राष्ट्रीय खेल
1928 से 1956 तक का समय भारतीय हॉकी के लिए स्वर्णकाल कहा जाता है. वैसे तो यह खेल लगभग सभी देशों में खेला जाता है, लेकिन 1928 में भारत हॉकी का विश्व विजेता बना था. वहीं इसके बाद हुए ओलंपिक में भारत ने हॉकी में कई स्वर्ण पदक भी अपने नाम किए. इसी के बाद से हॉकी की लोकप्रियता ऐसी बढ़ी कि इसे भारत का राष्ट्रीय खेल कहा जाने लगा.
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