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भारत के मुस्लिम दुनिया में सबसे ज्यादा सुखी हैं: मोहन भागवत

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नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत के मुस्लिम दुनिया में सबसे ज्यादा सुखी है. उन्होंने कहा कि जब भी भारत के सार के बारे में बात की गई है, सभी धर्मों के लोग एक साथ खड़े हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी प्रकार की कट्टरता और अलगाववाद केवल उन लोगों द्वारा फैलाया जाता है जिनके स्वार्थ प्रभावित होते हैं.

यह कहते हुए कि मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप की सेना में कई मुसलमानों ने लड़ाई लड़ी, भागवत ने सुझाव दिया कि भारत के इतिहास में जब भी देश की संस्कृति पर हमला हुआ, सभी धर्मों के लोग एक साथ खड़े थे. भागवत ने कहा कि ज्यादातर सुखी मुसलमान भारत में हैं. उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि अगर भारत को छोड़कर दुनिया में कोई ऐसा देश मौजूद हो, जहां किसी विदेशी धर्म द्वारा शासन किया गया हो और वो अब भी उस देश में मौजूद हो.

महाराष्ट्र की एक हिंदी मैग्जीन विवेक को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा सिर्फ भारत में हुआ है और कहीं नहीं. भागवत ने कहा कि भारत के विपरीत पाकिस्तान ने अन्य धर्मों के अनुयायियों को अधिकार नहीं दिया और इसे मुसलमानों के लिए एक अलग देश के रूप में बनाया गया. भागवत ने कहा कि हमारा संविधान ने यह नहीं कहता कि सिर्फ हिंदू भारत में रह सकते हैं; सिर्फ हिंदुओं को यहां सुना जाएगा; अगर आप यहां रहना चाहते हैं, तो आपको हिंदुओं की श्रेष्ठता को स्वीकार करना होगा. हमने उनके लिए जगह बनाई. यह हमारे राष्ट्र की प्रकृति है और उस अंतर्निहित प्रकृति को हिंदू कहा जाता है.

सत्तारूढ़ भाजपा के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख ने कहा कि हिंदू का किसी से इसबात को लेकर कोई लेना-देना नहीं है कि कौन किसकी पूजा करता है. उन्होंने कहा कि सभी को एक सूत्र में पिरोते हुए धर्म को जोडऩा, उत्थान करना चाहिए. उन्होंने कहा कि जब भी भारत और उसकी संस्कृति के प्रति समर्पण जागता है और पूर्वजों के लिए गर्व की भावना पैदा होती है, सभी धर्मों के बीच के भेद मिट जाते हैं और सभी धर्मों के लोग एक साथ खड़े होते हैं.

अयोध्या में राम मंदिर के बारे में बात करते हुए, भागवत ने कहा कि यह केवल कर्मकांड के उद्देश्य से नहीं है, मंदिर राष्ट्रीय मूल्यों और चरित्र का प्रतीक है. इसीलिए हिंदू समाज लंबे समय से दोबारा से मंदिर का निर्माण चाहता था. भागवत ने कहा कि हमारा जीवन दूषित हो गया था और हम अपने आदर्श श्रीराम के मंदिर के नष्ट होने से अपमानित हुए थे. हम इसका पुनर्निर्माण करना चाहते हैं, इसे बढ़ाना चाहते हैं और इसलिए, इस भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है.

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