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यूपीःउप-चुनाव नतीजे तय करेंगे 2022 की सियासी जमीन

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लखनऊ. उत्तर प्रदेश की सात विधानसभा सीटों के उप-चुनाव के लिए मतदान कल यानी 03 नवंबर को होगा. दस को नतीजे आ जाएंगे.संभवता करीब डेढ़ वर्ष बात होने वाले उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से पूर्व यह अंतिम उप-चुनाव होगा.इस  लिए इन उप-चुनाव के नतीजों की गूंज 2022 में होने वाले विधान सभा चुनाव तक में सुनाई दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. खासकर तब यदि यहां होने वाले उप-चुनाव में कोई बड़ा फेरबदल हो जाए,जिन सात सीटों पर चुनाव होना हैं उसमें से छहःसीटों पर भाजपा और एक पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है. इस समय प्रदेश में कोरोना संकट,अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्म स्थल पर मंदिर निर्माण, हाथरस कांड के बाद होने जा रहे उपचुनाव पर सबकी निगाहें टिकी हैं.

आधी आबादी का वोट भाजपा के पक्ष में ही पड़े इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठाते हुए ‘मिशन महिला शक्ति’का आगाज करके कई अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू कर दी है. इसी प्रकार योगी प्रदेश में चल रहे लव जेहाद को मुद्दा बनाकर इसे सख्ती से रोकने की बात कहकर अपने वोटरों को रिझाने में लगे हैं. बीजेपी नेता अपने वोटरों को यह भी बता रहे हैं कि अगर मोदी-योगी न होते तो प्रदेश में न लग पाता ‘जय श्री राम’ का नारा. वहीं गैर भाजपाइ  

उपचुनाव के नतीजों से सियासी दलों के प्रति मतदाताओं के रुख का पता चलेगा तो योगी सरकार के कामकाज पर भी मोहर लगेगी. इन उपचुनाव में बीजेपी की साख दांव पर लगी है. वहीं कांगे्रस के लिए भी बड़ी चुनौती है. पिछले कुछ महीनों से कांगे्रस यूपी में काफी तेजी के साथ सक्रिय है,अगर उसकी सक्रियता से कांगे्रस का वोट बैंक बढ़ता है तो निश्चित रूप से प्रियंका गांधी वाड्रा का कद ऊंचा होगा. भाजपा-कांगे्रस और समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी के साथ-साथ कई छोटे दलों ने भी अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा हैं. बीजेपी ने सभी सात सीटों के लिए अपने पुराने कार्यकर्ताओं और दो दिवंगत नेताओं(विधायको) की पत्नियों को टिकट देकर भरोसा जताया है. बीजेपी खुलकर इमोशनल कार्ड खेलने की कोशिश में लगी है. सभी सीटों पर अलग-अलग समीकरण काम कर रहे हैं.लेकिन यह आने वाले विधानसभा आम चुनाव की तस्वीर साफ कर रहे है. कुछ चीजें साफ होती जा रही है. और यही आने वाले चुनाव में निर्णायक भी होंगी. पिछला विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी ने कांगे्रस के साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन बार मौहाल बदला हुआ है. मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे बाहुबली भूमाफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने वाली योगी सरकार इसके जरिए भी वोटों का धुव्रीकरण करने की कोशिश करेगी. भाजपा की तरह समाजवादी पार्टी को भी उपचुनाव से काफी संभावनाए हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बार अपने दम पर चुनाव लड़ रही है, जबकि 2017 का विधान सभा चुनाव वह कांगे्रस के साथ और 2019 के लोकसभा चुनाव बसपा के साथ मिलकर लड़े थे,लेकिन दोनों ही बार सपा के हाथ कुछ नहीं लगा था. इस बार सपा सियासी गोलाबंदी  को और मजबूती देने में लगी है. उप-चुनाव में कांगे्रस-बसपा भी सपा प्रत्याशी से मुकाबला करते नजर आएंगे. सपा ने अबकी से बसपा-कांग्रेस दोनों में से किसी को भी राहत नहीं दी है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ सपा का जो गठबंधन हुआ था, इस बार वह प्रतिद्वंद्विता में बदला नजर आएगा. कल होने वाले उप-चुनाव बहुकोणीय होंगे, जिसमें भाजपा,सपा कांग्रेस और बसपा सहित छोटे-छोटे दलों के भी प्रत्याशी ताल ठांेक रहे हैं,जो वोट कटुआ साबित हो सकते हैं.

बहरहाल, पहली नजर में उपचुनाव की जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही  है,उसके अनुसार अधिकांश सीटों पर सपा वह अन्य विपक्षी दलों का मुकाबला  भाजपा से होता दिख रहा है.कांग्रेस सिर्फ दो सीटों पर मुकाबले में दिख रही है. बुलंदशहर सीट पर बसपा ने रालोद-सपा गठबंधन और कांग्रेस के प्रत्याशियों को पीछे छोड़ रखा है. इन चुनावों मे यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं कि सपा और कांग्रेस दोनों अब एक दूसरेे पर तीखे हमले कर रहे हैं. कांगे्रसी नेता पूरे प्रचार के दौरान दलित और मुस्लिम वोटरों को रिझाने की कोशिश करते रहे थे. समाजवादी पार्टी ने उन्नाव की पूर्व सांसद कांग्रेस नेता अन्नू टंडन को अपने पाले में किया तो यह संकेत साफ हो गया की सपा के लिए कांग्रेस भी उतने ही निशाने में होगी. जितने भाजपा अन्य विपक्षी दल. वैसे अन्नू टंडन का कांग्रेस छोड़ना एक शुरूवाती संकेत है. बसपा के भी कुछ नेता समाजवादी पार्टी में चले गए हैं,इससे आहत मायावती ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर सपा को हराने तक की बात कह दी है. उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी आगे भी बसपा और कांग्रेस के कुछ बड़े दिग्गजों को तोड़कर अपने पाले मेें ला सकती है. राजनैतिक पंडित कहते हैं कि जो भी दल भाजपा को मुकाबला देते नजर आएंगा उसे आम विधान सभा चुनाव में अतिरिक्त फायदा मिलेगा. इसलिए भी यह उप-चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं. सवाल जीत हार का कम यह साबित करने का ज्यादा है कि कौन सी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को टक्कर  दे सकती है. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि मुस्लिम वोट किसके साथ जाएगा? चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच भी मुस्लिम वोटों के लिए रस्साकशी देखी गई. 

सपा के सामने बड़ चुनौती यही है कि वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश  में अपने स्थिति कैसेे मजबूत करे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे मुस्लिम वोट तो जाता है, लेकिन अन्य वर्ग का वोट न मिलने से उसे वह सफलता नही मिलती जो भाजपा और बसपा को मिलती है. बुलंदशहर और अमरोहा के नौगांवा सादात में हो रहे उपचुनाव के संकेत भी यही आए है. इन दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी और उसके गठबंधन राष्ट्रीय लोक दल को इसलिए जूझना पड़ रहा है. क्योंकि मुस्लिम वोटों के साथ उसे वह अन्य जनाधार नहीं मिल पा रहा है. जिससे उनका रास्ता बिल्कुल साफ हो जाए. बुलंदशहर मेें तो ना चाहते हुए भी मुस्लिम वोट राष्ट्रीय लोकदल-सपा गठबंधन के बजाय बसपा के साथ जा रहा है. बुलंदशहर के मुस्लिम मतदाता मानते हैं कि बसपा के साथ वह इसलिए जा रहे हैं क्योंकि उसके साथ दलित वोट मजबूती से जुड़ा हुआ है. और वह भाजपा को टक्कर देने के लिए पर्याप्त हैं. मुस्लिम वोटों के लेकर हो रही खींचतान से निश्चिंत मायावती समझ  रही हैं कि जहां पर उनका मुस्लिम प्रत्याशी होगा, वहां पर मुसलामन उसके साथ  आ सकते हैं, इसलिए वह भाजपा के साथ जानेे की बात कहने से गुरेज नहीं करतीं. बुलंदशहर में बसपा प्रत्याशी को मिल रहा मुस्लिम वोट इस बात का प्रमाण भी है. इन सबके बीच कांग्र्रेस के नेता इस बात से खुश हैं कि सात उपचुनाव में दो पर कांग्रेस लड़ाई में है. बांगरमऊ और घाटमपुर दोनों विधानसभा क्षेत्रों में कांगे्रस बड़ा उलटफेर कर सकती है.

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