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अपराध की दुनिया का नया प्लेटफॉर्म कैसे बना डार्क वेब?

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नई  दिल्ली. सीबीआई ने सिंचाई विभाग उत्तर प्रदेश के एक जूनियर इंजीनियर को गिरफ्तार किया है. आरोपी इंजीनियर पर चित्रकूट, बांदा और हमीरपुर जिलों में 5 से 16 साल की आयु के करीब 50 बच्चों के साथ कुकृत्य करने का आरोप है. उसके पास आठ मोबाइल फोन, करीब आठ लाख रुपये नकदी, सेक्स टॉय, लैपटॉप और बड़ी मात्रा में बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री के अन्य डिजिटल साक्ष्य मिले हैं. आरोपी बच्चियों के पॉर्न बनाकर उन्हें डार्क वेब पर बेचता था. डार्क वेब अपराध की दुनिया का नया प्लैटफॉर्म बन गया है.

डार्क वेब में पॉर्न, ड्रग्स और अवैध हथियारों जैसा कारोबार खूब फलफूल रहा है. इसके पीछे बड़ा कारण है कि इस पर सक्रिय रहने वालों को पकड़ना पुलिस के लिए आसान नहीं है. लखनऊ में साइबर सेल के सीओ विवेक राय ने बताया कि इस पर अवैध कारोबार करने वालों को पकड़ना आसान नहीं होता है, जब तक पुलिस को आरोपी का नाम और डीटेल न पता हो.

क्या है सरफेस और डीप वेब

सीओ विवेक राय ने बताया कि इंटरनेट तीन प्लेटफॉर्म पर काम करता है. एक सरफेस वेब, डीप वेब और डार्क वेब. सरफेस बेव इंटरनेट का वह भाग होता है जिस पर हम लोग सामान्यता काम करते हैं. यह गूगल, याहू जैसे सर्च इंजन होते हैं. इसके लिए किसी की भी अनुमति नहीं चाहिए होती है. कोई भी इसका प्रयोग आसानी से इंटरनेट पर कर सकता है.

वहीं डीप वेब (Deep Web) केवल डीप वेब किसी डॉक्यूमेंट तक पहुंचने के लिये उसके URL एड्रेस पर जाकर लॉगइन करना होता है. इसके लिए यूजर को पासवर्ड और यूजर नेम की जरूरत होती है. जीमेल, ब्लॉगिंग वेबसाइट्स या किसी संस्थान के पोर्टल पर काम करना डीप वेब होता है.

क्या है डार्क वेब?

तीसरा और सबसे खतरनाक होता है डार्क वेब जिसे आमतौर पर यूज होने वाले सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता है. डार्क वेब की साइट्स को टॉर एन्क्रिप्शन टूल के प्रयोग से हाइड (छिपा) कर दिया जाता है.

अगर किसी को डार्क वेब में किसी तक पहुंचना है तो उसे टॉर (TOR) का प्रयोग करना होता है. इसमें नोड्स के एक नेटवर्क का उपयोग होता है. एक्सेस करते समय इसके डाटा का एन्क्रिप्शन एक-एक करके होता है. जिससे इसे यूज करने वाले की गोपनीयता बनी रहती है.

क्यों फल-फूल रहा अवैध कारोबार

सॉफ्टवेयर इंजिनियर कल्पना पाण्डेय कहती हैं कि डार्क वेब को साधारण ब्राउजर से ऐक्सेस नहीं किया जा सकता. इसके लिए टॉर या इसकी तरह के दूसरे खास ब्राउजर का ही प्रयोग करना पड़ता है. टॉर और खास ब्राउजर इस तरह एक-एक करके खुलता है जैसे प्लाज की लेयर होती हैं इसीलिए इसके अंत में .Com, .In की बजाय .Onion होता है.

इसमें वेबसाइट होस्ट करने वाला और सर्च करने वाला दोनों ही गुमनाम होता है. साइबर एक्सपर्ट विवेक राय ने बताया कि यहां लेनदेन भी बिटकॉइन या ऐसी ही किसी दूसरी वर्चुअल करंसी में होता है. यूजर का IP यानी इंटरनेट प्रोटोकॉल अड्रेस लगातार बदलता रहता है, जिससे इन्हें ट्रेस करना तकरीबन नामुमकिन होता है.

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