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किसान सुप्रीम कोर्ट की भी सुनने को नहीं तैयार, कमेटी में शामिल होने से इनकार

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नई दिल्ली. नए कृषि कानूनों को लेकर पिछले 48 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों (Farmers Protest) और सरकार बीच टकराव को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में है. दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के धरने और कोरोना संक्रमण के खतरे को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त नजर आ रहा है. सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के समाधान के लिए कमेटी बनाने की बात कही लेकिन किसान संगठनों ने साफ कह दिया है कि वह किसी भी कमेटी में शामिल नहीं होंगे. अगर सरकार तीनों बिलों को रद्द नहीं करती है तो 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकाली जाएगी. 

किसान संघर्ष कमेटी के प्रधान सतनाम सिंह पन्नू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कुछ भी कहे हमारी मांग है कि तीनों कानून रद्द हो. जब तक कानून रद्द नहीं होंगे तब तक हम यहां पर बने रहेंगे. 13 तारीख को हम लोहड़ी मनाएंगे और इस लोहड़ी में तीनों कृषि कानूनों की कॉपी जलाएंगे. 26 तारीख को हमारी तैयारियां मुकम्मल है. परेड करेंगे, मार्च निकालेंगे और लालकिला कूच करेंगे. 

दरअसर सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या के समाधान के लिए कमेटी बनाने का कहा है. कमेटी बनती है तो उसमें सिर्फ पंजाब के किसान ही नहीं बल्कि पूरे देश के किसान संगठनों से बातचीत की जाएगी. देश के कई राज्यों के किसानों ने इस बिल का समर्थन किया है. ऐसे में प्रदर्शन कर रहे पंजाब के किसानों को आशंका है कि उनकी मांगों को नहीं माना जाएगा. मामला कमेटी के पास जाता है तो बिल के फायदे और उससे होने वाले नुकसान पर व्यापक और तर्क संगत चर्चा की जाएगी. ऐसे में किसान नेता कमेटी में किसी भी तरह की राजनीतिक बात नहीं कर पाएंगे. इसलिए किसान कमेटी का विरोध कर रहे हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठन के वकील ए पी सिंह को फटकार लगाते हुए कहा कि आपको विश्वास हो या नहीं, हम सुप्रीम कोर्ट हैं. चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि हमें लगता है कि जिस तरह से धरना प्रदर्शन पर हरकतें ( जुलूस, ढोल, नगाड़ा आदि) हो रही हैं उसे देख कर लगता है एक दिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन में कुछ घटित हो सकता है. हम नहीं चाहते कि कोई घायल हो.

किसान आंदोलन पर सुनवाई के दौरान एक ट्विस्ट भी दिखा. इंडियन किसान यूनियन की ओर से सीनियर एडवोकेट नरसिम्हन ने कहा कि ये कानून किसानों के हित में हैं. वो इसके प्रावधानों से खुश हैं.  हम देश के ज्यादातर किसानों की नुमाइंदगी करते हैं. हम चाहते हैं कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले कोर्ट उनकी भी सुन ले.

क्या कहते हैं जानकार

क्या सुप्रीम कोर्ट संसद के कानून में दखल दे सकती है क्या बिना सुनवाई रोक पर अमल का आदेश सैद्धान्तिक तौर पर ठीक है? इस पर संवैधानिक मामलों के जानकार वकील ज्ञानंत सिंह ने कहा कि संविधान में पॉवर ऑफ डिवीजन है. कोर्ट को संवैधानिक समीक्षा का अधिकार है. दो अहम पहलू जिन पर कोर्ट किसी क़ानून को परखता है, वो है क्या संसद को वो क़ानून बनाने अधिकार है/ राज्यों के अधिकार में दखल तो नहीं और दूसरा मूल अधिकारों का हनन तो नहीं. वैसे सरकार के कानून को प्रथम दृष्टया ये माना जाता है कि वो कानूनी तौर पर वैध ही है. न्यायिक सिद्धान्त यही है. लिहाजा कानून पर रोक के आदेश के लिए सुनवाई की ज़रूरत तो होगी ही. 

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