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अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम कीमत पर चावल बेचकर भारत ने किया पाकिस्तान का खेल खराब

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नई दिल्ली. अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाकिस्तान और भारत दोनों ही अपने बासमती चावल और मोटे किस्म के अनाज को बेचते हैं. लेकिन इस मंच पर भारत ने जो बाजी मारी है और पाकिस्तान को झटका दिया है, उससे पाकिस्तान बौखलाया हुआ है.

बताया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाकिस्तान के चावल का खेल इसलिए भी खराब हुआ है क्योंकि भारत की कीमत उसकी कीमत की अपेक्षा काफी कम रही है. पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में जहां अपने चावल की कीमत 450 डॉलर प्रति टन रखी थी, वहीं भारत ने महज 360 डॉलर प्रति टन की दर से अपना चावल बेचा था. इसकी वजह से पाकिस्तान इस खेल में भारत से कहीं पीछे छूट गया.

पाकिस्तान के आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2020 से मई 2021 के बीच पाकिस्तान के राइस एक्सपोर्ट में करीब 14 फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई है. पाकिस्तान ने इससे पहले जहां 3.8 मिट्रिक टन चावल एक्सपोर्ट किया था वहीं इस बार वो 3.3 मिट्रिक टन ही चावल एक्सपोर्ट कर सका है. जानकारी के अनुसार देश के वाणिज्य सचिव का कहना है कि वर्ष 2020-21 के बीच कृषि और इससे संबंधित दूसरे उत्पादों का एक्सपोर्ट करीब 17.34 प्रतिशत तक बढ़ा है. उनके मुताबिक चावल, मोटे अनाज गेंहू समेत अन्य उत्पादों के एक्सपोर्ट में भी इस दौरान काफी वृद्धि आई है.

पाकिस्तान की राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन का आरोप है कि कम कीमत पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल बेचकर भारत ने पाकिस्तान का खेल खराब किया है. एसोसिएशन का ये भी कहना है कि भारत और पाकिस्तान के चावल के बीच आई 100 डॉलर प्रति टन की दूरी ने देश के एक्सपोर्ट को नुकसान पहुंचाया है. एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल कयूम प्राचा ने भारत पर ये भी आरोप लगाया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने चावल की कीमत को कम करके भारत ने विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन किया है.

उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सब्सिडाइज चावल को बेचना एक अपराध है. उनके मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कंबोडिया, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड, वियतनाम भी चावल बेच रहे हैं और इनकी कीमत 420 डॉलर प्रति टन से से 430 डॉलर प्रति टन है. ऐसे में भारत ने ही अपनी कीमत इतनी कम क्यों रखी हैं. इसकी वजह से भारत को जहां फायदा हुआ है वहीं पाकिस्तान को इसकी बदौलत नुकसान झेलना पड़ा है. प्राचा ने ये भी कहा है कि भारत की इस नीति से पाकिस्तान की नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल बेचने वाले दूसरे देशों को भी जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा है.

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