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अब UP में खेला करने को तैयार दीदी, कर सकती हैं समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन

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बंगाल में लाखों की तादाद में पूर्वांचल के लोग रहते हैं, जो किसी न किसी रूप में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ जुड़े हैं या फिर स्थानीय स्तर पर पार्टी की इकाई का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. ऐसे में अब तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी अपने इन समर्थकों व पार्टी कर्मियों को आगे बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती हैं.

वहीं, सियासी जानकारों की मानें तो यूपी में दीदी की धमाकेदार एंट्री में बंगाल में रह रहे पूर्वांचलवासी बतौर सियासी सारथी अपनी भूमिका निभा सकते हैं. भले ही तृणमूल यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन को बातचीत कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि अगर पार्टी पूरे सामर्थ के साथ चुनावी मैदान में उतरती है तो उसे पूर्वांचल में कई सीटों पर सफलता मिल सकती है. लेकिन इसके लिए अभी पार्टी को जमीनी स्तर पर कुछ काम करने की जरूरत है.

वहीं, प्रोफेसर ललित कुचालिया की मानें तो इस बात पर जरा भी संदेह नहीं है कि आज ममता बनर्जी एक ऐसी ब्रांड नेत्री बन गई हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के टक्कर का नेता माना जा रहा है. साथ ही दीदी ने भी यह तय कर लिया है कि अब उनकी पार्टी बंगाल के बाहर दूसरे राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश में अपनी मौजूदगी दर्ज कराएगी, ताकि लोकसभा चुनाव 2024 की प्लानिंग से पहले 2022 में भाजपा को सूबे में नुकसान पहुंचाया जा सके.

यदि भाजपा सूबे में कमजोर होती है और किसी तरह से तृणमूल 15-20 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब होती है तो फिर आगे दीदी की डगर आसान हो जाएगी. खैर, गठबंधन को लेकर उनकी समाजवादी पार्टी से बातचीत जारी है. लेकिन फिलहाल तक कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सका है. दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार कमजोर हुई हैं और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उनके वोट बैंक में आई गिरावट को देख लगाया जा सकता है.

हालांकि, कांग्रेस को प्रियंका गांधी वाड्रा से खासा उम्मीद है और उनकी बढ़ी सक्रियता पार्टी के लिए संजीवनी बूटी साबित हो सकती है, लेकिन तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी अब हर मंच से कांग्रेस को एक कमजोर रीढ़हीन पार्टी साबित करने में जुट गई हैं. ममता और उनकी पार्टी अब खुलकर कांग्रेस पर हमला बोल रही है. ममता बनर्जी ने एक ऐसा लेख लिखा है, जिससे यह लग रहा है कि तृणमूल अब भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता की मुख्य सूत्रधार बनने को अपने पथ पर अग्रसर है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने लेख में लिखा है कि कांग्रेस भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ने में बुरी पूरी तरह से विफल रही है. इसलिए अब भारतीय अवाम ने तृणमूल को ‘फांसीवादी’ भगवा पार्टी को हटाकर एक नया भारत बनाने की जिम्मेदारी सौंपी हैं.

दरअसल, दीदी का ये लेख उनकी पार्टी के मुखपत्र “जागो बांग्ला” के दुर्गा पूजा संस्करण में प्रकाशित हुआ है. लेख में दीदी आगे लिखती हैं कि इस साल की शुरुआत में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ तृणमूल के शानदार जीत के बाद लोगों का उनके व उनकी पार्टी के प्रति विश्वास बढ़ा है.

लेख में उन्होंने आगे लिखा है कि भाजपा बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी हार को पचा पाने में विफल रही है और प्रतिशोध की सियासत कर रही है. अभी तृणमूल के सामने एक नई चुनौती है और वो है दिल्ली की पुकार. इस देश के लोग जनविरोधी नीतियों से राहत चाहते हैं और राजनीति और फांसीवादी ताकतों की हार.

वहीं, कोलकाता के बड़ाबाजार अंचल में पूर्वांचलवासियों को लेकर पार्टी यूपी में धमाकेदार एंट्री की प्लानिंग कर रही है और इसके लिए एक विशेष टीम तैयार की गई है, जो जमीनी समीकरण के अध्ययन के साथ ही क्षेत्रवार प्रभावी व्यक्तियों की एक ऐसी सूची बना रही है, जिन्हें पार्टी बतौर प्रत्याशी मैदान में उतार सकती है.

एक नजर पूर्वांचल की सियासी समीकरण पर

यूपी की सत्ता के गलियारों का रास्ता तय करने को हर पार्टी के लिए जरूरी होता है कि वो इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर अधिक से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करे और कहा जाता है कि जिस पार्टी को पूर्वांचल के लोगों का साथ मिला उसकी सरकार बननी तय है.

पूर्वांचल में 156 सीटें हैं और इनमें से 61 सीटों पर जीत-हार निर्णय जातिगत समीकरण पर निर्भर करता है. यही कारण है कि पूर्वांचल में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अधिक प्रभावी है. अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो यहां सबसे अधिक आबादी दलितों की है. इसके बाद पिछड़ी जातियां और फिर ब्राह्मण और राजपूत आते हैं. अगर धर्म के आधार पर बात की जाए तो मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका सबसे अहम होती है.

यदि आप पूर्वांचल की सियासी गणित को जाति-धर्म के बीच रखकर समझना चाहते हैं तो नीचे दिए आंकड़ों बहुत कुछ स्पष्ट करने देंगे. साथ ही सबसे अहम बात यह है कि पूर्वांचल में हरिजन, मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है तो वहीं, कुछ सीटों पर पटेल और राजभर निर्णायक की भूमिका में हैं.

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