लखनऊ. उत्तर प्रदेश के लखनऊ में सरकारी विभाग में फर्जी नौकरी का एक बड़ा मामला सामने आया है. इसमें आरोपी पिछले 15 साल से सरकारी विभाग में काम कर रहा था और किसी को इसकी भनक तक नहीं थी. हालांकि इस मामले में जालसाज और अधिकारियों की मिलीभगत को नकारा नहीं जा सकता है. जानकारी के मुताबिक अमित पीएसी में सिपाही के रूप काम कर रहा था. वह पंद्रह साल तक लगातार सरकारी वेतन लेता रहा और किसी को उस पर शक भी नहीं हुआ. उसने मनीष के रूप में खुद को दस्तावेज में दिखाया और इसी पहचान पर वह फर्जीवाड़े को अंजाम दे रहा था. जबकि उसका असली नाम अमित है.
जानकारी के मुताबिक अमित नाम का आरोपी सिपाही 32वीं बटालियन पीएसी में काम कर रहा था. जब असली मनीष सिंह के मोबाइल फोन एलआईसी और बैंक के मैसेज आने लगे तो इस मामले से पर्दा हटा. इसके बाद एसटीएफ में तैनात असली सिपाही ने फर्जी सिपाही के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया और पुलिस ने इसकी जांच शुरू की. पुलिस ने जांच शुरू की और फर्जी सिपाही को हिरासत में ले लिया. लेकिन गिरफ्तारी की धारा न होने के कारण उसे निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया था.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विभूतिखंड इंस्पेक्टर चंद्रशेखर सिंह ने बताया कि रेवती, बलिया निवासी मनीष कुमार सिंह पुत्र निर्मल सिंह यूपी एसटीएफ में सिपाही के पद पर तैनात हैं. उन्होंने 21 मार्च 2021 को गांव धतुरी टोला पोस्ट सोनकी भाट, थाना दोकटी जनपद बलिया निवासी अमित कुमार सिंह उर्फ मनीष कुमार सिंह पुत्र भगवान सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. जानकारी के मुताबिक फर्जी दस्तावेज तैयार कर अमित कुमार सिंह उर्फ मनीष कुमार सिंह वर्ष 2006 से पीएसी की 32वीं बटालियन में सिपाही के पद पर कार्य कर रहा था. यह बात एसटीएफ में तैनात सिपाही मनीष कुमार सिंह के सामने फरवरी तब आयी, जब एलआईसी हाउसिंग और एसबीआई से लोन से संबंधित दस्तावेजों की कॉपी जमा करने को कहा गया था. मनीष पहले ही लोन ले चुके थे.
मनीष ने बताया कि पहली बार उसने बैंक से फोन कॉल को नजरअंदाज किया, लेकिन जब लगातार बैंक से कॉल आने लगे तो वह बैंक पहुंचे. वहां पता चला कि पीएसी में तैनात सिपाही ने उसके नाम और आधार कार्ड पर लोन के लिए आवेदन किया है. इन दस्तावेजों में उसका नाम, पिता का नाम, पता और जन्म तिथि सभी उसके हैं. इसके बाद ही उसने मुकदमा दर्ज कराया था.
असल में एसटीएफ की जांच में यह भी पता चला कि अमित बदायूं और मनीष बरेली में भर्ती हुए थे. विभागीय जांच में उसके खिलाफ कई तथ्य पाए गए हैं. सब-इंस्पेक्टर पवन सिंह ने बताया कि आरोपी को मार्च में हिरासत में लिया गया था. लेकिन उसे निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया. क्योंकि उसके खिलाफ दर्ज मामले में गिरफ्तारी की धाराएं नहीं लगी थी और विवेचना के आधार पर बाद में इसमें धाराएं बढ़ाई गई.
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