यूपी में सियासी हालात तेजी से बदल रहे हैं, लिहाजा लगता है कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में भी सियासी समीकरण बदलेंगे?
अभी उत्तर प्रदेश विधानसभा में उपाध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी और भाजपा, दोनों ही दलों के कई विधायक इधर-उधर हुए हैं, मतलब- आंतरिक अनुशासन खत्म हो रहा है?
इससे यह भी नजर आ रहा है कि जनप्रतिनिधियों को एहसास हो रहा है कि यूपी में कुछ तो बदलाव होगा, इसलिए वे पार्टी से ज्यादा अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं?
इस चुनाव में बीजेपी की जीत के बावजूद, समाजवादी पार्टी को मिले 60 वोटों ने सत्तारुढ़ दल की चिंता बढ़ा दी है और बड़ा सवाल यह है कि भाजपा के कितने और किन विधायकों ने पार्टी व्हिप न मानते हुए समाजवादी प्रत्याशी को वोट दे दिया?
यह साफ लगता है कि विधानसभा उपाध्यक्ष चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई है और तकरीबन सभी दल इसके शिकार हुए हैं!
खबरों पर भरोसा करें तो इस चुनाव में सपा के नरेंद्र वर्मा 244 वोट से हार गए, परन्तु हार-जीत का गणित उलझ गया है, क्योंकि सपा के 49 विधायक हैं, किन्तु उसे 60 विधायकों का समर्थन मिल गया, कैसे? सियासी कायदे से बीजेपी को 316 से ज्यादा वोट मिलना चाहिए थे, किंतु उसे 304 वोट ही मिले
यही नहीं, इस चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा विधायक गैरहाजिर रहे, इस पर भी सवालिया निशान है?
सियासी सयानों का मानना है कि यह चुनावी नतीजे बता रहे हैं कि एक बार फिर पार्टी से हटकर विभिन्न दलों के नेता अपने लाभ-हानि के गणित पर फोकस हो रहे हैं, मतलब- कोई भी दल एकतरफा जीत की हालत में नहीं है!
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