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अपनी कमाई बढ़ाने में जुटी सरकार, केंद्र सरकार GST में बड़े फेरबदल की कर रही तैयारी

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नई दिल्ली. महंगाई की मार से पहले से हलकान आम आदमी पर सरकार टैक्स का बोझ और बढ़ा सकती है. मोदी सरकार जीएसटी की दरों में बड़े फेरबदल की तैयारी कर रही है. अगले दो साल में टैक्स रेवेन्यू बढ़ाने की योजना के तहत ऐसा किया जा सकता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जीएसटी के निचले स्लैब की दर में बढ़ोतरी हो सकती है. जबकि इसकी चार स्लैब की दर को कम कर तीन किया जा सकता है. इसके अलावा ज्यादा खपत वाले और जरूरी सामानों पर लगने वाले जीएसटी की दरों को युक्तिसंगत बनाया जाएगा. फिलहाल 480 ऐसे आइटम्स हैं जिन पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है. कुल जीएसटी कलेक्शन का 70 फीसदी हिस्सा इसी सेगमेंट से आता है.

12-18 फीसदी स्लैब की जगह लाया जाएगा नया स्लैब!

अभी जीएसटी के चार स्लैब हैं- 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जीएसटी के निचले स्लैब 5 फीसदी की दर को बढ़ाकर 6-7 फीसदी किया जा सकता है. जबकि 12 फीसदी और 18 फीसदी के स्लैब को हटा कर उसकी जगह 15 फीसदी का नया स्लैब लाया जा सकता है. 28 फीसदी के स्लैब में कोई फेरबदल नहीं होगा.

निचले स्लैब की बढ़ सकती है दर

जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में इस फेरबदल पर मुहर लग सकती है. उम्मीद जताई जा रही है कि मई के तीसरे हफ्ते में काउंसिल की बैठक हो सकती है. जीएसटी के निचले स्लैब 5 फीसदी को 6-7 फीसदी और 12 फीसदी के स्लैब को 15 फीसदी किए जाने का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा. इस स्लैब में ज्यादातर खाने-पीने की वस्तुएं और दवाएं शामिल हैं. हालांकि, 18 फीसदी के स्लैब को 15 फीसदी पर लाए जाने से कुछ सामानों की कीमतों में कमी आने की भी संभावना है.

राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति अप्रैल के अंत तक दरों में फेरबदल की अपनी रिपोर्ट जीएसटी काउंसिल को सौंप सकती है. इसमें राजस्व बढ़ाने के लिए अलग-अलग कदमों का सुझाव भी शामिल होगा. इस समिति की अध्यक्षता कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई कर रहे हैं.

बता दें कि मार्च 2022 में जीएसटी कलेक्शन अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. इस दौरान 1,42,095 करोड़ रुपये की जीएसटी वसूली हुई है जो अब तक की सबसे ज्यादा वसूली है. जीएसटी वसूली में महाराष्ट्र पहले नंबर पर रहा है जहां 20,305 करोड़ रुपये जीएसटी से आए. दूसरे नंबर पर 9,158 करोड़ रुपये के साथ गुजरात और तीसरे नंबर पर कर्नाटक (8,750 करोड़ रुपये) रहा है. इसके बाद तमिलनाडु (8,023 करोड़), हरियाणा (6,654 करोड़) और उत्तर प्रदेश (6,620 करोड़ रुपये) का नंबर है.

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