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RBI के रेपो रेट बढ़ाने से हो सकता है EMI और कर्ज महंगा

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नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ने बुधवार को रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट्स में बढ़ोतरी कर आम आदमी को तगड़ा झटका दिया है। रिजर्व बैंक के इस कदम से सस्ते कर्ज की उम्मीद लगाए बैठे आम आदमी के लिए कर्ज अब सस्ता नहीं बल्कि महंगा हो सकता है।

गौरतलब है कि आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय एमपीसी की बैठक 3 दिन चली। आमतौर पर यह बैठक 2 दिन होती है लेकिन प्रशासनिक अनिवार्यताओं के चलते पहली बार एमपीसी की बैठक 3 दिन चली। यह नए वित्त वर्ष 2018-19 की दूसरी द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक है।

इस बैठक के दौरान रेपो रेट में 0.25 फीसद के इजाफे का फैसला किया है। इसके बाद रेपो रेट 6 फीसद से बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत हो गई है वहीं रिवर्स रेपो रेट भी 6.50 फीसद हो गई है। इसके अलावा वित्त वर्ष 2018-19 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान आरबीआई ने 7.4 फीसद पर बरकरार रखा है। वहीं सीआरआर में भी 4 फीसद का इजाफा हुआ है।

ज्ञात हो कि चालू वित्त वर्ष में उर्जित पटेल के नेतृत्व में हुई पहली द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट को 6 फीसद और रिवर्स रेपो रेट को 5.75 फीसद पर बरकरार रखा था। इसके पहले भी 5-6 दिसंबर (2017) को हुई एमपीसी बैठक में बढ़ती महंगाई का हवाला देते हुए नीतिगत ब्याज दरों में कोई भी बदलाव नहीं किया गया था। आरबीआई ने इस बैठक में रेपो रेट को छह फीसद पर और रिवर्स रेपो रेट भी 5.75 फीसद पर बरकरार रखा था।

जानकारों के अनुसार रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आर.बी.आई. कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। इसी प्रकार रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आर.बी.आई. में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।

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