लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के हाथ आगामी चुनावों के लिए बेहद ही अहम और कारगर मुद्दा लग चुका है और वो उस पर बखूबी रणनीति बनाने में भी जुट चुकी हैं। दरअसल भाजपा के कथित दलित विरोधी रुख को उजागर करने के मकसद से प्रमोशन में आरक्षण को मायावती चुनावी मुद्दा बनाएगी, क्योंकि उसका मानना है कि अधिकांश राज्य सरकारें इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के फैसले की अनदेखी करेंगी।
गौरतलब है कि बसपा सुप्रीमो ने कहा था कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का कुछ हद तक स्वागत है। उन्होंने यह भी कहा था कि न्यायालय ने कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है और केंद्र एवं राज्य सरकारों से इसे लागू करने को कहा गया है। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि राज्यों के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं है कि वे पिछड़ेपन के आंकड़े एकत्र करें, जैसा 2006 में था। राज्यों को यह फैसला सकारात्मक रूप से लेना चाहिए।
अगर जानकारों की मानें तो बसपा के एक नेता ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि पार्टी के लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा है। वह इसे संसद के भीतर और बाहर उठाती रही है। प्रमोशन में आरक्षण निश्चित तौर पर चुनावी मुद्दा बनेगा। उन्होंने कहा कि राज्यों और केंद्र को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वे इसे लागू करें या नहीं। पार्टी का मानना है कि अधिकांश राज्य सरकारें इसकी अनदेखी करेंगी। बसपा का पूरा प्रयास होगा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सके।
ज्ञात हो कि मायावती ने मांग की थी कि केंद्र राज्यों को पत्र लिखे और कहे कि फैसले का ईमानदारी से क्रियान्वयन हो और इस फैसले को सकारात्मक रूप से लिया जाए। बसपा नेता ने कहा कि मायावती संभवत: जल्द ही पार्टी नेताओं को निर्देश देगी कि इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया जाए।
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