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सप्लाई में गिरावट के चलते दशहरे तक पेट्रोल-डीज़ल के दाम तोड़ सकते है सारे रिकॉर्ड

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नई दिल्ली. दुनियाभर में बढ़ती डिमांड लेकिन सप्लाई में आई गिरावट की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की खबर के मुताबिक,  बीते तीन हफ्ते से कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का रुख है. ब्रेंट क्रूड का भाव बढ़कर 80 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई है. इसीलिए एक्सपर्ट्स मान रहे है कि घरेलू बाजार में पेट्रोल के दाम अगले एक से दो हफ्ते में तेजी से बढ़ सकते है. कई शहरों में ये 110 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच सकते है

दिल्ली में तेल की कीमतों पर गौर करें तो यहां पेट्रोल 101.19 पैसे प्रति लीटर वहीं, डीजल 88.80 रुपये प्रति लीटर के भाव पर बिक रहा है. वहीं मुंबई में पेट्रोल 107.26 रुपये प्रति लीटर वहीं, डीजल 96.41 पैसे प्रति लीटर है. हालांकि, अभी भी पेट्रोल-डीजल रिकॉर्ड स्तर पर बिक रहा है.

कच्चे तेल से क्या क्या बनता है?

आमतौर पर सर्दियों में इस्तेमाल की वैसलीन भी कच्चे तेल से बनती है. ऑयल फैट को काफी परिष्कृत करने पर गंधहीन और स्वादहीन जेली मिलती है, जिसे कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

असफाल्ट, चारकोल, कोलतार या डामर कहा जाने वाला यह प्रोडक्ट भी कच्चे तेल से मिलता है. हालांकि दुनिया में कुछ जगहों पर चारकोल प्राकृतिक रूप से भी मिलता है. इसका इस्तेमाल सड़कें बनाने या छत को ढकने वाली वॉटरप्रूफ पट्टियां बनाने में होता है. कच्चे तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है. दुनिया भर में मिलने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कच्चे तेल से ही निकाला जाता है. वनस्पति तेल से भी प्लास्टिक बनाया जाता है लेकिन पेट्रोलियम की तुलना में महंगा पड़ता है.

ऑयल रिफाइनरी में मोम का उत्पादन भी होता है. यह भी कच्चे तेल का बायप्रोडक्ट है. वैज्ञानिक भाषा में रिफाइनरी से निकले मोम को पेट्रोलियम वैक्स कहा जाता है. पहले मोम बनाने के लिए पशु या वनस्पति वसा का इस्तेमाल किया जाता था. कच्चे तेल के शोधन के पहले चरण में ब्यूटेन और प्रोपेन नाम की प्राकृतिक गैसें मिलती हैं. बेहद ज्वलनशील इन गैसों का इस्तेमाल कुकिंग और ट्रांसपोर्ट में होता है. प्रोपेन को अत्यधिक दवाब में ब्युटेन के साथ कंप्रेस कर एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) के रूप में स्टोर किया जाता है. ब्यूटेन को रेफ्रिजरेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. प्रोपेन अलग करने के बाद कच्चे तेल से पेट्रोल, कैरोसिन, डीजल जैसे तरल ईंधन निकाले जाते हैं. सबसे शुद्ध फॉर्म पेट्रोल है.

फिर कैरोसिन आता है और अंत में डीजल. हवाई जहाज के लिए ईंधन कैरोसिन को बहुत ज्यादा रिफाइन कर बनाया जाता है. इसमें कॉर्बन के ज्यादा अणु मिलाए जाते हैं. जेट फ्यूल माइनस 50 या 60 डिग्री की ठंड में ही नहीं जमता है. गैस और तरल ईंधन निकालने के बाद कच्चे तेल से इंजिन ऑयल या मोटर ऑयल मिलता है. बेहद चिकनाहट वाला यह तरल मोटर के पार्ट्स के बीच घर्षण कम करता है और पुर्जों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है. मोटर ऑयल निकालने के साथ ही तेल से काफी फैट निकलता है. इसे ऑयल फैट या ग्रीस कहते हैं. लगातार घर्षण का सामना करने वाले पुर्जों को नमी से बचाने के लिए ग्रीस का इस्तेमाल होता है.

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