तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयानों के बाद कांग्रेस सहित विपक्षी खेमे में खलबली है. यह इसलिए भी है, क्योंकि कांग्रेस जिस संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की डोर से अब तक विपक्ष को एकजुट कर नेतृत्व कर रही थी, उस पर ही ममता ने सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस जाहिर तौर पर तिलमिलाई हुई है और इसने ममता को सीधे-सीधे अवसरवादी करार दिया है. वहीं ममता के निकटस्थ रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने फिर से परोक्ष रूप से राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर आग को और भड़का दिया है. विपक्ष के कुछ दल चुप्पी साधे देख रहे हैं और बेचैन हैं कि ऐसे में वे क्या करें.
पिछले कुछ दिनों से लगातार तृणमूल और कांग्रेस की दूरी बढ़ती जा रही थी. इसका चरम बुधवार को तब हुआ, जब मुंबई में शरद पवार से मुलाकात के बाद ममता ने संप्रग के अस्तित्व को ही खारिज कर दिया. संदेश साफ था कि अब जो भी गठबंधन तैयार होगा, उसका नेतृत्व नए सिरे से तय होगा. गौरतलब है कि माकपा के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी में भी इसको लेकर कुछ संदेश था. मुखपत्र में लिखा गया था कि कांग्रेस और ममता दोनों ही विपक्ष को नेतृत्व नहीं दे सकती हैं. नेतृत्व का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए. ध्यान रहे कि इस पूरी लड़ाई में पवार ही एक ऐसी धुरी बचते हैं, जिनके खिलाफ बयान नहीं आए हैं.
बहरहाल, ममता के बयान के बाद विपक्ष में खुली लड़ाई छिड़ गई है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो ममता बनर्जी पर तीखा हमला बोला और कहा कि क्या उनको नहीं पता है कि संप्रग क्या है? बंगाल में जीत के बाद वह सोच रही हैं कि पूरे भारत ने ‘ममता-ममता’ का जाप करना शुरू कर दिया है. लेकिन भारत का मतलब बंगाल नहीं है और अकेले बंगाल का मतलब भारत नहीं है.’
कांग्रेस का गुबार यहीं तक नहीं थमा. गुरुवार को संसद परिसर में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन की मौजूदगी में ममता पर और तीखे सवाल दागे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सिद्धांतों वाली पार्टी है. लेकिन ममता बनर्जी का जो चरित्र रहा है, वह जब राजग के साथ रहती हैं, तो उसे बेहतर बताती हैं. जब संप्रग के साथ रहती हैं तो उसे अच्छा बताती हैं. वैसे भी वह जिस संप्रग पर सवाल खड़ा कर रही हैं, वह उसके साथ 2012 से ही नहीं थीं.
कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा ने संयमित बयान दिया
कांग्रेस के ग्रुप-23 में शामिल वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा ने जरूर संयमित बयान दिया और कहा कि यह समय एकजुटता का है. कांग्रेस के बगैर संप्रग वैसा ही है, जैसे आत्मा के बिना शरीर. लेकिन दूसरे सदस्यों के तीखे बयानों के बाद यह तो माना ही जा सकता है कि तृणमूल और कांग्रेस की दूरी अरसे तक बनी रहेगी. दरअसल प्रशांत किशोर के ट्वीट ने कांग्रेस को और उकसा दिया. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा था कि कांग्रेस का एक स्थान है, लेकिन नेतृत्व दैवीय अधिकार नहीं है. उन्होंने तो राहुल का नाम नहीं लिया, लेकिन कांग्रेस के पवन खेड़ा ने जरूर स्पष्ट कर दिया कि जिसके नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया जा रहा है, वह भाजपा और आरएसएस के खिलाफ लड़ रहा है.
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