नई दिल्ली. आम आदमी को मार्च में महंगाई के मोर्चे पर झटका लगा है. खाने-पीने के सामान महंगा होने से महंगाई 17 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं. मंगलवार को जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) आधारित रिटेल महंगाई दर मार्च में बढ़कर 6.95 पर पहुंच गई है. खाने-पीने के सामानों की महंगाई 5.85 प्रतिशत से बढ़कर 7.68 प्रतिशत हो गई. दूसरी ओर, फरवरी में आईआईपी -3.2 प्रतिशत से बढ़कर 1.7 प्रतिशत हो गई.
यह लगातार तीसरा महीना है जब महंगाई दर आरबीआई की 6 प्रतिशत की ऊपरी लिमिट के पार रही है. फरवरी 2022 में रिटेल महंगाई दर 6.07 प्रतिशत और जनवरी में 6.01 प्रतिशत दर्ज की गई थी. एक साल पहले मार्च 2021 में रिटेल महंगाई दर 5.52 प्रतिशत थी. बीते दिनों रिजर्व बैंक ने इस वित्त वर्ष की अपनी पहली मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग के बाद महंगाई के अनुमान को बढ़ाते हुए पहली तिमाही में 6.3 प्रतिशत, दूसरी में 5 प्रतिशत, तीसरी में 5.4 प्रतिशत और चौथी में 5.1 प्रतिशत कर दिया था.
सीपीआई क्या होता है?
दुनियाभर की कई अर्थव्यवस्थाएं महंगाई को मापने के लिए डबलूपीआई (Wholesale Price Index) को अपना आधार मानती हैं. भारत में ऐसा नहीं होता. हमारे देश में डबलूपीआई के साथ ही सीपीआई को भी महंगाई चेक करने का स्केल माना जाता है. भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक (मेन स्टैंडर्ड) मानता है. अर्थव्यवस्था के स्वभाव में डबलूपीआई और सीपीआई एक-दूसरे पर असर डालते हैं. इस तरह डबलूपीआई बढ़ेगा, तो सीपीआई भी बढ़ेगा.
रिटेल महंगाई की दर कैसे तय होती है?
रिटेल महंगाई मापने के लिए कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें होती हैं, जिसकी रिटेल महंगाई की दर तय करने में अहम भूमिका होती है. करीब 299 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है.
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