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साल 2014-2016 के बीच: बेरोजगारी और बेबसी से लाचार, 26,500 युवा जिन्दगी से गया हार

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नई दिल्ली । अच्छे दिन लाने वालों की सरकार में किये जा रहे बड़े बड़े दावे महज छलावे बन कर रह गये हैं इनके मुताबिक देश बदल रहा है लेकिन अगर गौर से देखें तो लगभग हर कोई किसी न किसी आग में जल रहा है । आज कोई एक भी नहीं जो खुशहाल हो, हर तरफ भय, लाचारी, बेबसी का आलम है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, जवान सरहद पर शहीद हो रहे हैं। और तो और देश की अमूल्य धरोहर, नाज होता है मुल्क को जिस पर!  वह आज बेरोजगारी, बेबसी और लाचारी का शिकार होकर भारी संख्या में करने लगा हो आत्महत्या तो ऐसे में कहने को रह जाता है और क्या?

ये वो कड़वी हकीकत है जिसकी जानकारी सरकार ने दी है जिसके तहत उसने संसद में बताया कि वर्ष 2014 से 2016 के बीच देश भर में 26,600 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की।

ज्ञात हो कि राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने यह जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2016 में 9,474 छात्र-छात्राओं ने, वर्ष 2015 में 8,934 छात्र-छात्राओं ने और वर्ष 2014 में 8,068 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में छात्र-छात्राओं की आत्महत्या के सर्वाधिक 1,350 मामले महाराष्ट्र में हुए जबकि पश्चिम बंगाल में ऐसे 1,147 मामले, तमिलनाडु में 981 मामले और मध्य प्रदेश में 838 मामले हुए। वहीं वर्ष 2015 में आत्महत्या के महाराष्ट्र में 1,230 मामले, तमिलनाडु में 955 मामले, छत्तीसगढ़ में 730 मामले और पश्चिम बंगाल में 676 मामले हुए।

गौरतलब है कि कुछ समय पहले भी ऐसी खबरें आई थी कि भारत में हर घण्टे एक छात्र आत्महत्या करता है. इसके लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2015 के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया था।

यानी भारत में पिछले कई सालों से छात्र-छात्राओं की आत्महत्या रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. मेडिकल जर्नल लांसेट की 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 15 से 29 साल के बीच के किशोरों-युवाओं में आत्महत्या की ऊंची दर के मामले में भारत शीर्ष के कुछ देशों में शामिल है।

 

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