Wednesday , April 24 2024
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भारत-चीन सीमा पर एक नया तनाव, अब चरवाहों ने किया सेना पर पथराव

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  • चरवाहों का कहना है सेना उन्हें अपने ही क्षेत्र में भेड़-बकरियां चराने नहीं दे रही
  • उन्हें भेड़ बकरियां चराने से रोकने का फायदा दरअसल चीन को ही मिलता है
  • इलाके को खाली देखकर चीनी सेना के जवान भारतीय सीमा में घुसने लगते हैं
  • दुम्चुले में जब उन्हें जाने से रोक दिया गया तो चीन ने वहां कब्जा जमा लिया

नई दिल्ली। लद्दाख क्षेत्र में भारत चीन सीमा पर शुक्रवार को एलएसी के नजदीक चरवाहों और सेना के बीच तनाव की स्थिति बन गई। इसके बाद चरवाहों की ओर से हुई पत्थरबाजी में चार जवानों के घायल होने की खबर सामने आ रही है।

दरअसल इस इलाके में रहने वाले चरवाहों का कहना है कि सेना उन्हें अपने ही क्षेत्र में भेड़-बकरियां चराने नहीं दे रही है। तकदीर गांव के लोगों का कहना है कि पीढ़ियों से वे इस इलाके में अपनी मवेशियों को चराते रहते हैं। जबकि सेना के जवान अब चरवाहों को उस इलाके में बकरियों को चराने से मना कर रहे हैं। ऐसे में कई बार स्थिति बहुत तनाव वाली हो जाती है। शुक्रवार को हालत ये हो गए कि पहले दोनों पक्षों में हाथापाई हुई और बाद में पत्थरबाजी शुरू हो गई। इसे सेना के 4 जवान घायल हो गए।

सेना ने मसले को सुलझाने के लिए प्रशासन और स्थानीय लोगों के साथ बैठक की, लेकिन इसके बावजूद तनाव बना हुआ है। इलाके के पार्षद दोर्जे का कहना है कि यहां 350 परिवार रहते हैं जो भेड़ बकरियां चराकर अपना जीवन यापन करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें अपने ही इलाके में बकरियां चराने से रोका जाएगा तो वे गृहमंत्री और रक्षा मंत्री को इस संबंध में पत्र लिखेंगे।

ग्रामीणों का कहना है कि सेना और ITBP की तरफ से उन्हें भेड़ बकरियां चराने से रोकने का फायदा दरअसल चीन को ही मिलता है। इस पहाड़ी इलाके को खाली देखकर चीनी सेना के जवान धीरे धीरे भारतीय सीमा में घुसने लगते हैं। ग्रामीणों को कहना है कि लद्दाख क्षेत्र में दुम्चुले एक जगह है, जहां 30 साल पहले तक चरवाहे जाते थे, लेकिन जब उन्हें वहां जाने से रोक दिया गया तो चीन ने वहां कब्जा जमा लिया।

गौरतलब है कि लद्दाख क्षेत्र में भारत-चीन के बीच सीमा विवाद 1962 की लड़ाई के बाद से ही जारी है। सीमा पर कोई निशान नहीं है और दोनों देशों के अपने अपने दावे होते हैं। लिहाजा दोनों देशों के बीच अक्सर सीमा विवाद सामने आते ही रहते हैं। मगर पिछले कुछ सालों में चीन जिस तरह से अपना ढांचा तैयार कर रहा है, स्थानीय लोगों में चिंताएं बढ़ गई हैं।

 

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