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दुनिया के कई देशों में दोबारा लॉकडाउन से कच्चे तेल का बाजार तेजी से गिरा

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सिंगापुर. कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोमवार सुबह तेज गिरावट देखी गई. जानकारों के मुताबिक यूरोप में कोरोना महामारी के फिर से फैलाव और उसके कारण कई देशों में लागू हुआ सख्त लॉकडाउन इसका प्रमुख कारण है. पहले से ही गंभीर हो चुके तेल कारोबार के संकट पर नई मार पड़ी है. 

एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अक्तूबर में तेल की कीमतें पांच महीने के सबसे न्यूनतम स्तर पर रहीं. मार्च से विभिन्न देशों में लागू हुए लॉकडाउन के बाद अप्रैल में तेल की कीमत इतिहास के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई थी. मई से इसमें सुधार के संकेत दिखे थे, लेकिन अक्तूबर में संकट और गहरा गया.

अक्तूबर के आखिरी कारोबारी दिन ये कीमत औसतन 35 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गई. तेल कारोबार पर नजर रखने वाली वेबसाइट ऑयलप्राइस.कॉम के मुताबिक फिलहाल इस हाल में सुधार की संभावना नहीं है. इसलिए मुमकिन है कि तेल उत्पादक देशों का संगठन ओपेक अभी जितना तेल उत्पादन कर रहा है, हो सकता है साल 2021 तक इसमें भी कटौती करनी पड़े.

विशेषज्ञों के मुताबिक कच्चे तेल के बाजार में मंदी के कारण इस साल निवेश लगभग 35 फीसदी घट गया है. इससे जो मार पड़ी है, उससे तेल उद्योग आने वाले कई वर्षों तक नहीं निकल पाएगा. पेरिस स्थित संस्था इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने कुछ रोज पहले विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट प्रकाशित की थी. उसके मुताबिक तेल और गैस क्षेत्र में निवेश में कटौती फिलहाल एक स्थायी रुझान बन गया है. महामारी ने संकट को और ज्यादा गंभीर जरूर बना दिया है, लेकिन आईईए के मुताबिक संकट के लक्षण पहले से दिख रहे थे.

अमेरिका में शेल ऑयल में निवेश में इस वर्ष 45 फीसदी गिरावट आई है. ये क्षेत्र 2014 से बुरी तरह प्रभावित है, जब ओपेक ने तेल का उत्पादन बढ़ाकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और गैस की कीमतें गिरा दी थीं. उसके पीछे मकसद शेल ऑयल क्षेत्र को अलाभकारी बनाना था.

ये अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है, जिसमें ऑर्गेनिक रूप से समृद्ध चट्टानों को तोड़कर तेल निकाला जाता है. इसका सबसे बड़ा भंडार अमेरिका में है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल सस्ता हो जाने के कारण शेल ऑयल को निकालना 50 फीसदी महंगा हो गया है. कोरोना महामारी में तेल की गिरती कीमतों के कारण कंपनियों ने इसमें निवेश और घटा दिया है.

जानकारों के मुताबिक, ऑयल इंडस्ट्री पर अनिश्चितता का साया लगातार गहरा होता जा रहा है. इसकी एक वजह यह भी है कि यूरोप में अब दौर अक्षय ऊर्जा के स्रोतों में निवेश का है. वहां सरकारें जमीन से अंदर से निकाले जाने वाले तेल और गैस की जगह वायु और सौर जैसे ऊर्जा स्रोतों में निवेश को प्रोत्साहित कर रही हैं. 

अमेरिका में अभी भी जमीन के नीचे से निकलने वाले तेल और गैस का उपयोग हो रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के खतरे के कारण वहां भी अक्षय ऊर्जा स्रोतों के पक्ष में जनमत बनने के संकेत हैं. इसी बीच कोरोना महामारी के कारण तेल के उपभोग में भारी कमी आई है. विमान सेवाएं अभी भी सामान्य नहीं हुई हैं.

सड़क और रेल परिवहन भी पहले जैसी स्थिति में नहीं पहुंचा है. इसी बीच कोरोना महामारी की दूसरी लहर आ जाने के कारण ऐसा होने की उम्मीदों पर नई चोट पहुंची है. इस क्षेत्र में ये धारणा बन गई है कि जब तक कोरोना वायरस पर लगाम नहीं लगती, तेल क्षेत्र का संकट जारी रहेगा.

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