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चुनाव से पहले ही नित नई दिक्कतें आने लगी पेश, गैर तो गैर अब अपनों से ही घिरते अखिलेश

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डेस्क।  समाजवादी पार्टी और उसके मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ही तमाम दुश्वारियां सामने आने लगी हैं अगर इन दुश्वारियों का सिलसिला यूं ही चलता रहा तो उनके लिए आने वाला वक्त काफी नुक्सानदेह साबित हो सकता है। समाजवादी कुनबे में जारी खींचतान और आजम के बड़बोलेपन और कथित ओछे बयान पर अमर सिंह द्वारा मोर्चा खोले जाने की चेतावनी काफी हद तक बदल सकती है आगामी चुनाव में अखिलेश और सपा की कहानी।

गौरतलब है कि हाल ही में भाजपा का सामना उसके ही हिसाब से करने की तैयारी में जुटे अखिलेश ने जहां धार्मिक मुद्दे का सहारा लेते हुए राम मंदिर के मुकाबले विष्णु मन्दिर बनाने की पहल किये जाने से प्रदेश में गठबंधन के तहत उनसे जुड़े दल को थोड़ा हैरान तो किया ही है। वहीं अचानक उनकी पार्टी और परिवार दोनों ही से काफी नजदीक रहे अमर सिंह द्वारा आजम खान के कथित ओछे बयानों को लेकर सीधे सीधे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को निशाने पर लिया जाना। साथ ही उनकी पार्टी को समाजवादी पार्टी के बजाय नमाज वादी पार्टी बताया जाना मामूली बात नही है।

चाणक्य के कथनानुसार और कहावत के अनुसार आपका भेदी आपको जिस हद तक नुक्सान पहुचा सकता है और जिस हद तक पहुचा सकता है उतना आपका बड़ा से बड़ा शत्रु नही। ये बात मौजूदा परिपेक्ष्य में समाजवादी पार्टी और उसके अघ्यक्ष अखिलेश यादव को दी गई अमर की चेतावनी पर भी बखूबी लागू होती है। हालांकी इस नौबत के आने का इशारा तो हाल ही में राजधानी लखनऊ के इंदिरागांधी प्रतिष्ठान में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान मौजूद अमर सिंह की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने दे ही दिया था।

दरअसल उस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हमारी सरकार में बिजनेस हाउस के साथ परदे के आगे ही सारे मामले निपटाये जाते हैं जबकि कुछ दलों की सरकारों में तो परददे के पीछे काफी गलबहियां होती थीं और क्या क्या होता था उसको बखूबी यहां बैठे अमर सिंह जी जानते हैं। एक तरह से वो और कुछ नही सीधे सीधे समाजवादी पार्टी के पूर्व के क्रियाकलापों की ओर इशारा था।

बेहद ही गंभीर बात है कि जहां एक तरफ अभी भी समाजवादी पार्टी अपने कुनबे की कलह से उबर नही पाई है वहीं हमेशा से अपने विवादित बयानों के लिए खासे चर्चित आजम खान जब तब उलजूलूल बयान देकर बखेड़ा खड़ा कर देते हैं जिससे पार्टी का काफी नुक्सान होना तय है। वहीं अब आजम की ही देन है कि बरसों तक समाजवादी पार्टी के कल तलक खासमखास रहे अमर सिंह द्वारा खुलेआम पार्टी और उसके मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर न सिर्फ जमकर हमला बोला गया बल्कि आगे के लिए बड़ी चेतावनी भी दी गई है।

इतना ही नही वहीं इसी बीच सपा के संरक्षक और सपा अध्यक्ष के पिता मुलायम सिंह के दिल का दर्द का एक बार फिर छलक कर लबों तक आ जाना और कहना कि शायद लोग मेरे मरने के बाद मेरी इज्जत करें एक तरह से उस दर्द को बखूबी झलकाता है जो एक पिता अपनी औलाद से पाता है। मुलायम का ऐसा कहने से काफी हद तक पिता-पुत्र के बीच की ढकी छुपी कहानी का मर्म सामने आकर फिर हो गया एक मुद्दा गर्म।

इसके अलावा रक्षाबंधन के मौके पर समाजवादी पार्टी के कभी कद्दावर कहे जाने वाले नेता और मौजूदा अध्यक्ष के चाचा शिवपाल भी अपने दिल का दर्द बयान करते हुए कह बैठे कि वह आज भी पार्टी की सेवा को बखूबी तत्पर हैं लेकिन पिछले डेढ़ साल से किसी जिम्मेदारी वाले पद का इंतजार ही कर रहे हैं। हालांकि हाल के राज्यसभा चुनाव के दौरान कुछ पल को समाजवादी कुनबे में मामला सम्हला नजर आया था लेकिन उसके बाद से वापस हाथ से निकलता ही नजर आया है।

ज्ञात हो कि अखिलेश के लिए एक के बाद एक नित नई दिक्कतें आ रही हैं पेश। हाल ही में वो बंगला विवाद से उबर भी नही पाऐ थे कि उनका अपने होटल का ड्रीम प्रोजेक्ट खटाई में पड़ता नजर आ रहा है। वहीं इस सबके बीच जहां चुनावी समर का दौर है एसे में अपनों के ही निशाने पर अखिलेश का आना बेहद ही काबिले गौर है।

वहीं पिता और चाचा के अलावा अगर गौर किया जाये तो काफी हद तक अमर सिंह को भी उनका अपना ही कहा जा सकता है क्यों कि इससे पूर्व भी कई मौके ऐसे आऐ लेकिन तब अमर सिंह इस तरह से पेश नही आये मगर जैसा कि कहा जा रहा है मामला व्यक्तिगत और उनकी बेटियों पर बेहद ही ओछे बयान का है जिसके चलते ही अमर सिंह को मजबूरन इस हद तक आना पड़ा।

अगर जानकारों की मानें तो एक तो अखिलेश के धार्मिक मुद्दे पर आने के चलते प्रदेश में सहयोगी दल वैसे ही पशोपेश में आ गया था वहीं अब सपा के नेता द्वारा अमर सिंह के परिवार को लेकर कथित व्यक्तिगत आक्षेप जों कि सहयोगी दल की मुखिया को कतई पसन्द नही है। वो भी कुछ नागवार तो गुजरेगा ही जैसा कि उन्होंने इसी बात पर अपने दल के दो लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। वहीं अब अखिलेश के अपने ही फिर उन पर उंगली उठा रहे हैं। ऐसे में बड़ी बात नही कि चुनावी समर में नफे नुक्सान को देखते सहयोगी दल कहीं अपना मन न दे बदल।

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